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________________ १९० नन्दी सूत्र ****** ********************** *****-*-*-* -*-*-*-*-*-* ४. जिह्वा इंद्रिय धारणा - भाव जिह्वाइंद्रिय के द्वारा रस का ज्ञान धारण करना। जैसे-चखे हुए ईख के रस का ज्ञान धारण करना। ५. स्पर्शन इंद्रिय धारणा - भाव स्पर्शनइंद्रिय के द्वारा स्पर्श का ज्ञान धारण करना। जैसे-छुए हुए रस्सी के स्पर्श का ज्ञान धारण करना। ६. अनिन्द्रिय धारणा - भाव मन के द्वारा, रूपी अरूपी पदार्थ का ज्ञान धारण करना, जैसेदेखे हुए उदयमान सूर्य के स्वप्न का ज्ञान धारण करना। तीसे णं इमे एगट्ठिया णाणाघोसा णाणावंजणा पंच णामधिज्जा भवंति, तं जहा-धरणा, धारणा, ठवणा, पइट्ठा, कोटे। से त्तं धारणा॥ ३३॥ अर्थ - धारणा के विभिन्न घोष और विभिन्न व्यंजन वाले एकार्थक पाँच नाम हैं। यथा - १. धरणा, २. धारणा, ३. स्थापना, ४. प्रतिष्ठा और ५. कोष्ठ। विवेचन - जैसे अवग्रह के तीन भेद हैं, वैसे ही धारणा के भी तीन भेद हैं। वे इस प्रकार हैं १. अविच्युति - अवाय के द्वारा निर्णय के पश्चात्, मध्य में अन्तर रहित वह निर्णय ज्ञान कुछ काल तक उपयोग में रहना। २. वासना - उक्त अविच्युति के कारण पुनः कालान्तर में स्मृति हो सके, ऐसा आत्मा में ज्ञानलब्धि-ज्ञान संस्कार का बनना और रहना। ___ ३. स्मृति - उस ज्ञानलब्धि से कालान्तर में उपयोग लगाकर पहले निर्णय किये गये पदार्थ के रूपादि का स्मरण करना। ____धारणा के इन पाँचों नामों में पहला नाम अविच्युति का है, दूसरा नाम स्मृति का है और पिछले तीन नाम वासना के हैं। वे इस प्रकार हैं १. धरणा - जाने हुए पदार्थ ज्ञान को अन्तर्मुहूर्त तक दृढ़तापूर्वक उपयोग में धारण किये रहना-'धरणा' है। २. धारणा - जघन्य अन्तर्मुहूर्त उत्कृष्ट असंख्यात काल के बाद भी उस पदार्थ ज्ञान का स्मरण होंना 'धारणा' है। ___३. स्थापना - उस पदार्थ ज्ञान को हृदय में जघन्य अन्तर्मुहूर्त उत्कृष्ट असंख्येय काल तक स्थापन किये रखना 'स्थापना' है। .. ४. प्रतिष्ठा - उस पदार्थ ज्ञान को भेद प्रभेद पूर्वक हृदय में रखना-'प्रतिष्ठा' है। ५. कोष्ठ - जैसे कोठे में रक्खा हुआ धान कणशः पूर्णतः सुरक्षित रहता है, वैसे उक्त पदार्थ ज्ञान का शब्दशः पूर्णतया हृदय में रहना-कोष्ठ' है। प्रश्न - जातिस्मरणज्ञान किसके अन्तर्गत है? For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004198
Book TitleNandi Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size7 MB
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