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________________ १८९ मति ज्ञान - धारणा के भेद . ..... विवेचन - विशेष अपेक्षा से ये अवाय की विभिन्न पाँच अवस्थाओं के नाम हैं। वे इस प्रकार हैं . १. आवर्तनता - ईहा से अवाय की ओर मुड़ना आवर्तनता है। जैसे-उक्त ढूँठ के प्रति यह निर्णय होना कि इसमें ढूंठ में पाये जाने वाले धर्म मिलते हैं, अतएव यह दूंठ होना चाहिए। २. प्रत्यावर्तनता - ईहा से अवाय के सन्निकट पहुँच जाना, प्रत्यावर्तनता है। जैसे-उक्त ढूँठ के प्रति यह निर्णय होना कि 'यह दूँठ ही होना चाहिए।' ३. अवाय - ईहा की सर्वथा निवृत्ति हो जाना अवाय है। जैसे-उक्त ढूँठ के प्रति यह निर्णय होना कि 'यह दूंठ है।' __४. बुद्धि - निर्णय किये हुए पदार्थ को स्थिरता पूर्वक बार-बार स्पष्ट रूप में जानना, बुद्धि है। जैसे-उक्त ढूंठ को यों जानना कि-'यह दूंठ ही है।' . ५. विज्ञान - निर्णय किये हुए पदार्थ का विशिष्ट ज्ञान होना, 'विज्ञान' है। जैसे-उक्त ढूँठ के प्रति यह ज्ञान होना कि-यह अवश्यमेव ढूँठ ही है। यह अवाय ज्ञान है। धारणा के भेद से किं तं धारणा? धारणा छव्विहा पण्णत्ता तं जहा-सोइंदियधारणा, चक्खिंदियधारणा, घाणिंदियधारणा, जिब्भिंदियधारणा, फासिंदियधारणा, णोइंदियधारणा।. प्रश्न - वह धारणा क्या है ? उत्तर - धारणा के छह भेद हैं-१. श्रोत्रेन्द्रिय धारणा, २. चक्षुरिन्द्रिय धारणा, ३. घ्राणेन्द्रिय धारणा, ४. जिह्वेन्द्रिय धारणा, ५. स्पर्शनेन्द्रिय धारणा तथा ६. अनिन्द्रिय धारणा। ... विवेचन - अवाय के द्वारा निर्णय किये गये पदार्थ ज्ञान को ज्ञान में धारण करना, 'धारणा' है। ... १. श्रोत्रइंद्रिय धारणा - भाव श्रोत्रइंद्रिय के द्वारा शब्द ज्ञान धारण करना, जैसे-सुने हुए शंख शब्द का ज्ञान धारण करना। २. चक्षुइंद्रिय धारणा - भाव चक्षुइंद्रिय के द्वारा रूप का ज्ञान धारण करना, जैसे-देखे हुए ढूँठ के रूप का ज्ञान धारण करना। . ३. घ्राणइंद्रिय धारणा - भाव घ्राणइंद्रिय के द्वारा गंध का ज्ञान धारण करना। जैसे-तूंघी हुई कस्तूरी के गंध का ज्ञान धारण करना। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004198
Book TitleNandi Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size7 MB
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