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________________ मति ज्ञान *********************************************************** - स्थूलभद्र का त्याग Jain Education International घर आकर मंत्री ने अपने एक विश्वस्त सेवक को बुला कर कहा " जाओ, आज रात भर तुम गंगा के किनारे छिप कर बैठे रहो। रात में जब वररुचि आकर मोहरों की थैली पानी में रख कर चला जाय, तब तुम वह थैली उठा कर आना।" नौकर ने वैसा ही किया। वह गंगा के किनारे छिप कर बैठ गया । आधी रात के समय वररुचि आया और मोहरों की थैली पानी में रख कर चला गया। पीछे से सकडाल का सेवक उठा और पानी में से थैली निकाल कर ले आया। उसने थैली लाकर सकडाल मंत्री को सौंप दी। प्रातः काल वररुचि सदा की भांति गंगा के किनारे गया और पटिये पर बैठ कर गंगा की स्तुति करने लगा। इतने में राजा भी अपने मंत्री सकडाल को साथ लेकर गंगा के किनारे आया। लोगों की भारी भीड़ जमा थी, जब वररुचि स्तुति कर चुका, तो उसने पटिये को दबाया, किन्तु थैली बाहर नहीं आई । वररुचि हतबुद्धि हो गया। तत्काल सकडाल ने कहा "पण्डितराज ! वहाँ क्या देखते हो? आपकी रखी हुई थैली तो यह रही । " ऐसा कह कर मंत्री ने वह थैली सब लोगों को दिखाई और उसका सारा रहस्य प्रकट कर दिया। लोग वररुचि को मायावी, कपटी, धोखेबाज आदि कह कर अपमान एवं निन्दा करने लगे। वररुचि बहुत लज्जित हुआ। उसे असह्य आघात लगा। उसने इसका बदला लेने का निश्चय किया और वह सकडाल का छिद्रान्वेषण करने लगा । - १६७ ******************* For Personal & Private Use Only - 1 कुछ समय पश्चात् सकडाल मंत्री के घर उसके छोटे लड़के श्रीयक के विवाह की तैयारी होने लगी। उसके घर राजा को भेंट देने के लिए बहुत से शस्त्र बनाये जा रहे थे । वररुचि को इस बात का पता चला। उसने बदला लेने के लिए यह अवसर ठीक समझा। उसने अपने शिष्यों को. निम्नलिखित श्लोक कण्ठस्थ करवा दिया + तं ण विजाणेइ लोओ, जं सकडालो करेसइ । णंदरायं मारे वि करि, सिरीयउं रज्जे ठवेसई ॥ अर्थात् - सकडाल मंत्री क्या षड्यंत्र रच रहा है, इस बात का पता लोगों को नहीं है । वह नन्द राजा को मार कर अपने पुत्र श्रीयक को राजा बनाना चाहता है। शिष्यों को यह श्लोक कण्ठस्थ करवा कर वररुचि ने उनसे कहा कि शहर की प्रत्येक गली में इस श्लोक को बोलते फिरो । उसके शिष्य ऐसा ही करने लगे। एक समय राजा ने यह श्लोक सुन लिया। उसने सोचा'मुझे इस बात का कुछ भी पता नहीं है कि सकडाल मेरे विरुद्ध ऐसा षड्यंत्र रच रहा है । ' दूसरे दिन प्रात:काल सकडाल मंत्री ने आकर सदा की भाँति राजा को प्रणाम किया। मंत्री को देखते ही राजा ने मुँह फेर लिया। यह देख कर मंत्री भाँप गया। घर आकर उसने सारी बात श्रीयक को कही और कहा " पुत्र ! राजकोप बड़ा भयंकर होता है । कुपित हुआ राजा, वंश का www.jainelibrary.org
SR No.004198
Book TitleNandi Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size7 MB
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