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________________ ६० . श्री सूपगडांग सूत्र श्रुतस्कंध २ कठिन शब्दार्थ - आयहेउं - अपने लिए, णायहेडं - ज्ञाति के लिये, सयणहे - स्वजन हेतु, . णिस्साए - निमित्त अणुगामिए - आनुगामिक, उवचरए - उपचरक (सेवक) पडिपहिए - प्रतिपथिक-सम्मुख आने वाला, संधिछेदए - संधिछेदक-सैंध लगाने वाला, गंठिछेदए - गंठिछेदक-गांठ काटने वाला, ओरब्भिए - भेड (मारक) चराने वाला, सोवरिए - सूअर चराने वाला, वागुरिए - मृगादि को पकडने वाला, साउणिए - चीडीमार, मच्छिए - मछुआरा, सोवणिए - कुत्तों को पालने वाला, सोवणियंतिए - पशुओं का शिकार करने वाला, असाणे - अपने आप को, उवक्खाइत्ता- प्रख्यातप्रसिद्ध । भावार्थ - जिस भनुष्य को परलोक का ध्यान नहीं है वह क्या-क्या अनर्थ नहीं कर सकता है ? जो पुरुष सांसारिक विषय भोगों को उपार्जन करना ही मनुष्य का परम कर्तव्य समझते हैं उनके लिये कार्य और अकार्य कोई वस्तु नहीं है। वे भारी से भारी पाप करने में जरा भी संकोच नहीं करते हैं। वे झूठ बोल कर, चोरी करके, विश्वासघात के द्वारा नरहत्या, स्त्रीहत्या, बालहत्या, पशुहत्या इत्यादि पापों के आचरण से सांसारिक सुख की सामग्री को उपार्जन करते हैं । थे या का नाम भी नहीं जानते हैं । क्रूरता निष्ठुरता उनके नस नस में भरी रहती है । आगे कहे जाने वाले चौदह प्रकार के अनर्थों का सेवन करके अपने मनुष्य जीवन को पापमय बना देते हैं। वे जगत् में महापापी कह कर संबोधित किये जाते हैं। वे जिन पापमय कर्मों का अनुष्ठान करते हैं वे संक्षेपतः ये हैं - १. कोई मनुष्य किसी धनवान् व्यक्ति को किसी ग्राम आदि में जाता हुआ देखकर उसका धन हरण करने के लिए उसके पीछे-पीछे जाता है, जब वह अपने पाप कार्ष के चौग्ध काल और स्थान को प्राप्त करता है तब वह उस धनवान् को मारपीट कर उसका धन छीन लेता है। ___२. कोई धनवान् का नौकर बन कर उसकी सेवा करता है परन्तु वह धन हरण करने का मौका पाकर उसे मार कर उसका धन हरण कर लेता है । ___ ३. कोई धनवान् को किसी दूसरे ग्राम से आता हुआ सुन कर उसके सम्मुख जाता है और अवसर पाकर उसे मारपीट कर उसका धन लूट लेता है । ४. कोई धनवानों के घर में सेंध लगा कर उसमें प्रवेश करता है और उसके धन को हरण करके अपना और अपने परिवार का पालन करता है। ५. कोई धनवानों को असावधान देख कर उनकी गाँठ काटता है। ... ६. कोई भेड़ों को पालता हुआ उनके मांस और बालों को बेच कर अपना आहार उपार्जन करता है । वह दूसरे प्राणियों का भी घात करता है केवल भेड़ों का ही नहीं इसलिये वह महापापी हैं । ७. कोई सुअरों को पाल कर उनके बाल तथा मांस से अपना आहार उपार्जन करता है । श्वपच चाण्डाल और खट्टिक जाति के लोग प्रायः यह कार्य करते हैं । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004189
Book TitleSuyagadanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages226
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size6 MB
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