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________________ ५१ अध्ययन १ उद्देशक ४ ०००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००० समिए उ सया साहू, पंच-संवर-संवुडे । सिएहिं असिए भिक्खू, आमोक्खाय परिव्वएग्जासि ॥ १३ ॥ त्तिबेमि ।। ॥इति ससमय परसमय वत्तव्वया णामं पढमं अग्झयणं समत्तं ॥ . कठिन शब्दार्थ - समिए - समिति से युक्त, पंच संवरसंवुडे - पांच संवर से संवृत्त रहता हुआ, सिएहिं - सित-गृहस्थों में, असिए - मूर्छा न रखता हुआ, आमोक्खाय - मोक्ष पर्यन्त, परिव्वएजा - संयम का अनुष्ठान करे । भावार्थ - भिक्षणशील साधु, समिति से युक्त और पाँच संवरों से संवृत्त होकर गृहस्थों में मूर्छा न रखता हुआ मोक्ष की प्राप्ति पर्य्यन्त संयम का पालन करे, यह श्री सुधर्मा स्वामी जम्बू स्वामी से कहते हैं कि यह मैं कहता हूँ। . विवेचन - इस प्रकार मूलगुण और उत्तर गुणों को बतला कर इस गाथा में शास्त्रकार ने सब का उपसंहार करते हुए कहा है कि मुनि पांच संवरों से संवृत्त अर्थात् पांच महाव्रत युक्त, पांच समितियों से संयुक्त और तीन गुप्तियों से गुप्त रहे। गृहस्थों के बीच रहता हुआ भी उनमें मूर्छा न करे। जैसे कीचड़ में रहता हुआ कमल कीचड़ में लिप्त नहीं होता और जल से ऊपर रहता है इसी प्रकार साधु भी गृहस्थों के अन्दर रहता हुआ भी उनके सम्पर्क में लिप्त न होवे अपितु समस्त कर्मों का क्षय करने के लिये सदा उपरोक्त तेरह प्रकार (५ महाव्रत, ५ समिति और ३ गुप्ति) के चारित्र का पालन करने में रत रहे। यह शिष्य के प्रति उपदेश है। .. 'इति' शब्द अध्ययन की समाप्ति के लिये आता है। 'ब्रवीमि' का अर्थ है मैं कहता हूँ। यहाँ श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पांचवें गणधर श्री सुधर्मा स्वामी अपने शिष्य जम्बूस्वामी से कहते हैं कि - हे आयुष्मन् अम्बू! जैसा मैंने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी की पर्युपासना करते हुए मैंने उन के मुखारविन्द से सुना है वैसा ही मैं तुम्हें कहता हूँ। अपनी इच्छा से कुछ नहीं । ॥इति चौथा उद्देशक ॥ ॥ ससमय पर समय वक्तव्यता नामक प्रथम अध्ययन समाप्त । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004188
Book TitleSuyagadanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages338
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size7 MB
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