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________________ अध्ययन ८ २२१ झाणजोगं समाहट्ट, कायं विउसेज सव्यसो । तितिक्खं परमं णच्चा, आमोक्खाए परिव्वएग्जासि ॥त्ति बेमि ॥ २६ ॥ कठिन शब्दार्थ - झाणजोगं - ध्यान योग को, समाहट्ट- स्वीकार कर, विउसेज - व्युत्सर्ग करे, तितिक्खं - तितिक्षा को, आमोक्खाए - मोक्ष पर्यंत, परिव्वएजासि - संयम का पालन करे। भावार्थ - साधु ध्यान योग को ग्रहण करके सभी बुरे व्यापारों से शरीर तथा मन वचन को रोक देवे । एवं परीषह और उपसर्ग के सहन को अच्छा जानकर मोक्ष की प्राप्ति पर्य्यन्त संयम का अनुष्ठान करे । - विवेचन - मन, वचन और काया के विशिष्ट व्यापार को ध्यान योग कहते हैं । इस ध्यान योग को अच्छी तरह से ग्रहण करके अकुशल योग (बुरे कार्य) में जाते हुए मन, वचन काया के योगों को रोके। परीषह उपसर्गों को समभाव पूर्वक सहन करे एवं सब कर्मों के क्षय होने तक संयम में प्रबल पुरुषार्थ करता रहे। . त्ति बेमि - इति ब्रवीमि - श्री सुधर्मा स्वामी अपने शिष्य जम्बूस्वामी से कहते हैं कि - हे आयुष्मन् जम्बू ! जैसा मैंने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के मुखारविन्द से सुना है वैसा ही मैं तुम्हें कहता हूँ। अपनी बुद्धि से कुछ नहीं । ॥वीर्य नामक आठवाँ अध्ययन समाप्त॥ * ** For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004188
Book TitleSuyagadanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages338
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size7 MB
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