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अध्ययन ३ उद्देशक ४ 0000000000000000000000000000000000000000000000000०००००००००००००००
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कठिन शब्दार्थ - अभुंजिया - आहार त्याग कर, रामगुत्ते - रामगुप्त ने, बहुए - बाहुक ने, तारायणे (नारायणे)- तारागण-नारायण, रिसी - ऋषि ने ।
भावार्थ - कोई अज्ञानी पुरुष, साधु को भ्रष्ट करने के लिये कहता है कि-विदेह देश का राजा नमीराज ने आहार न खाकर सिद्धि प्राप्त की थी तथा रामगुप्त ने आहार खाकर सिद्धि लाभ किया था एवं बाहुक ने शीतल जल पी कर सिद्धि पाई थी तथा तारागण-नारायण ऋषि ने भी पका हुआ जल पी कर मोक्ष पाया था ।
आसिले देविले चवे, दीवायण महारिसी । पारासरे दगं भोच्चा, बीयाणि हरियाणि य ॥३॥
कठिन शब्दार्थ - दीवायण - द्वैपायन, महारिसी - महर्षि, दगं - उदक-कच्चा पानी, बीयाणि - बीज, हरियाणि - हरी वनस्पति को। .
भावार्थ - आसिल, देवल, महर्षि द्वैपायन तथा पाराशर ऋषि ने शीतल जल, बीज और हरी वनस्पतियों को खाकर मोक्ष प्राप्त किया था ।
एए पुव्वं महापुरिसा, आहिया इह संमया । ... भोच्चा बीओदगं सिद्धा, इइ मेयमणुस्सुयं ॥४॥
कठिन शब्दार्थ - संमया - सम्मत, बीओदगं - बीज और सचित्त जल का, मेयं-मैंने, अणुस्सुयं - सुना है।
भावार्थ - कोई अन्यतीर्थी साधुओं को संयम भ्रष्ट करने के लिये कहता है कि पूर्व समय में ये महापुरुष प्रसिद्ध थे और जैन आगम में भी इनमें से कई माने गये हैं इन लोगों ने शीतल जल और बीज का उपभोग करके सिद्धि लाभ किया था ।
विवेचन - अन्यमतावलम्बियों का कथन है कि - महाभारत आदि पुराणों में इन महापुरुषों का वर्णन है। इनमें से नमिराजर्षि आदि महापुरुषों का वर्णन जैन सिद्धान्तों में भी आता है । किन्तु उपरोक्त कथन सत्य नहीं है। क्योंकि - जिन किन्हीं महापुरुषों ने मुक्ति प्राप्त की है उन सभी ने १८ पापों का त्याग करके ही मुक्ति पाई है। किन्तु १८ पापों का सेवन करके नहीं।
तत्थ मंदा विसीयंति, वाह-छिण्णा व गद्दभा । पिट्ठओ परिसप्पंति, पिट्ठसप्पी य संभमे ॥५॥
कठिन शब्दार्थ - वाहछिण्णा - भार से पीड़ित, गद्दभा - गर्दभ गधा, पिट्ठओ - पीछे, परिसप्पंति - चलते हैं, पिट्ठसप्पी - पैर रहित-सरक कर चलने वाला, संभमे - भ्रमण करता है । ''
भावार्थ - मिथ्यादृष्टियों की पूर्वोक्त बातों को सुनकर कोई अज्ञानी मनुष्य संयम पालन करने में
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