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________________ स्थान ५ उद्देशक १ प्रशस्त बन्धन की प्राप्ति की योग्यता होने पर भी प्रतिकूल कर्म करके उसकी घात कर देना और अप्रशस्त बन्धन पाना बन्धन प्रतिघात है। बन्धन प्रतिघात से इसके सहचारी प्रशस्त शरीर, अङ्गोपाङ्ग, संहनन, संस्थान आदि का प्रतिघात भी समझ लेना चाहिये। - ४. भोग प्रतिघात - प्रशस्त गति, स्थिति, बन्धन आदि का प्रतिघात होने पर उनसे सम्बद्ध भोगों की प्राप्ति में रुकावट होना भोग प्रतिघात है। क्योंकि कारण के न होने पर कार्य कैसे हो सकता है? ५. बल वीर्य पुरुषकार पराक्रम प्रतिघात - गति, स्थिति आदि के प्रतिघात होने पर भोग की तरह प्रशस्त बल वीर्य पुरुषकार पराक्रम की प्राप्ति में रुकावट पड़ जाती है। यही बल वीर्य पुरुषकार पराक्रम प्रतिघात है। ___ शारीरिक शक्ति को बल कहते हैं। जीव की शक्ति को वीर्य कहते हैं। पुरुष कर्त्तव्य या पुरुषाभिमान को पुरुषकार कहते हैं। बल और वीर्य का प्रयोग करना पराक्रम है। राजा के पांच चिह्न कहे गये हैं। ये चिह्न हर वक्त उसके साथ रहते हैं। परन्तु जब राजा धर्म सभा में जाता है तब सन्त महात्माओं के सम्मान की दृष्टि से वह इन पांच को भी छोड़ देता है जैसा कि कहा है - छत्र, चमर और मुकुट को, मोजड़ी अरु तलवार। राजा छोड़े पांच को धर्म सभा मंझार॥ उदीर्ण परीषहोपसर्ग ... पंचहि ठाणेहिं छउमत्थे उदिण्णे परीसहोवसग्गे सम्मं सहेज्जा खमेज्जा तितिक्खेज्जा अहियासेज्जा तंजहा - उदिण्णकम्मे खलु अयं पुरिसे उम्मत्तगभूए, तेण मे एस पुरिसे अक्कोसइ वा, अवहसइ वा णिच्छोडेइ वा, णिभंछेइ वा, बंधइ वा, संभइवा, छविच्छेयं करेइ वा, पमारं वा, जेइ वा, उद्दवेइ वा, वत्थं वा, पडिग्गहं वा, कंबलं वा, पायपुंछणं वा, आछिंदइ वा, विच्छिंदइ वा, भिंदइ वा, अवहरइ वा । जक्खाइटे खलु अयं पुरिसे, तेण मे एस पुरिसे अक्कोसइ वा तहेव जाव अवहरइ वा । ममं च णं तब्भववेयणिज्जे कम्मे उदिण्णे भवइ, तेण मे एस पुरिसे अक्कोसइ वा जाव अवहरइ वा । ममं च णं सम्मं असहमाणस्स अखममाणस्स अतितिक्खमाणस्स अणहिया-समाणस्स किं मण्णे कग्जइ ? एगंतसो मे पावे कम्मे कग्जइ । ममं च णं सम्म सहमाणस्स जाव अहियासमाणस्स किं मण्णे कज्जइ ? एगंतसो मे णिज्जरा कज्जइ। इच्चेएहिं पंचहि ठाणेहिं छउमत्ये उदिण्णे परीसहोवसग्गे सम्मं सहेज्जा जाव अहियासेज्जा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004187
Book TitleSthananga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size8 MB
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