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________________ स्थान ९ २६५ देवों का परिवार है। इसी तरह आग्नेय और रिष्ठ देवों के भी नौ देव और नौ सौ देवों का परिवार है। नौ ग्रैवेयक विमान कहे गये हैं यथा-अधस्तनअधस्तन ग्रैवेयक विमान-नीचे की त्रिक का सब से नीचे का विमान, अधस्तन मध्यम ग्रैवेयक विमान नीचे की त्रिक का बीचला विमान। अधस्तन उपरिम ग्रैवेयक विमान-नीचे की त्रिक का ऊपर का विमान । मध्यम अधस्तन ग्रैवेयक विमान-बीच की त्रिक का नीचे का विमान। मध्यम मध्यम ग्रैवेयक विमान-बीच की त्रिक का बीच का विमान, मध्यम उपरिम ग्रैवेयक विमान-बीच की त्रिक का ऊपर का विमान। उपरिम अधस्तन ग्रैवेयक विमान-ऊपर की त्रिक का नीचे का विमान, उपरिम मध्यम ग्रैवेयक विमान-ऊपर की त्रिक का बीच का विमान। उपरिम उपरिम ग्रैवेयक विमान-ऊपर की त्रिक का ऊपर का विमान । इन नौ ग्रैवेयक विमानों के नौ नाम कहे गये हैं यथा - भद्र, सुभद्र, सुजात, सोमनस, प्रियदर्शन, सुदर्शन, अमोघ, सुप्रबुद्ध और यशोधर ।।२॥ . विवेचन - जैसे एक घड़े पर दूसरा घड़ा रखा जाता है उसी प्रकार नौ ग्रैवेयक विमान भी घड़े की तरह एक एक के ऊपर है। इन नौ की तीन त्रिक हैं - नीचे की त्रिक, बीच की त्रिक और ऊपर की त्रिक । एक एक त्रिक में तीन तीन विमान हैं । आयु परिणाम - णवविहे आउपरिणामे पण्णत्ते तंजहा - गइपरिणामे, गइबंधण परिणामे, ठिइपरिणामे, ठिइबंधण परिणामे, उतुंगारवपरिणामे, अहेगारवपरिणामे, तिरियंगारवपरिणामे, दीहंगरवपरिणामे, रहस्संगारवपरिणामे । - भिक्ष प्रतिमा, प्रायश्चित्त णवणवमिया णं भिक्खुपडिमा एगासीएहिं राइदिएहिं चउहि य पंचुत्तरेहिं भिक्खासएहिं अहासुत्ता जाव आराहिया यावि भवइ । णवविहे पायच्छित्ते पण्णत्ते तंजहा - आलोयणारिहे जाव मूलारिहे, अणवठप्पारिहे॥१०८॥ . कठिन शब्दार्थ - आउपरिणामे - आयुपरिणाम, गइबंधण परिणामे - गतिबन्धन परिणाम, उडुंगारव परिणामे - ऊर्ध्वगौरव परिणाम, अहेगारव परिणामे - अधोगौरव परिणाम, तिरियंगारव परिणामे- तिर्यग् गौरव परिणाम, दीहंगरव परिणामे - दीर्षगौरव परिणाम, रहस्संगारव परिणामे - हस्व गौरव परिणाम, णवणवमिया - नवनवमिका, अणवठप्पारिहे - अनवस्थाप्याहं पारांचिक।। ___भावार्थ - आयुष्य कर्म की स्वाभाविक शक्ति को आयुपरिणाम, कहते हैं । अर्थात् आयुष्य कर्म जिस जिस रूप में परिणत होकर फल देता है वह आयुपरिणाम है इसके नौं भेद हैं यथा - गतिपरिणाम - आयुकर्म जिस स्वभाव से जीव को देव आदि निश्चित गतियाँ प्राप्त कराता है उसे गतिपरिणाम कहते हैं । गतिबन्धनपरिणाम - आयुकर्म के जिस स्वभाव से नियत गति का कर्मबन्ध Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004187
Book TitleSthananga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size8 MB
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