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________________ अध्ययन १५ क्षमा भाव रखूंगा, अहियासइस्सामि खेद रहित कठिन शब्दार्थ - वोसट्टकाए - व्युत्सृष्ट काय - काया का व्युत्सर्ग, चत्तदेहे - त्यक्तदेह - शरीर गत ममत्व का त्याग, खमिस्सामि होकर सहूँगा । भावार्थ श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने प्रव्रजित होने के बाद अपने मित्र ज्ञाति स्वजन संबंधी वर्ग को विसर्जित किया । विसर्जित करके इस प्रकार अभिग्रह धारण किया कि- " मैं आज से बारह वर्ष तक अपने शरीर का व्युत्सर्ग करता हूँ। शरीर के ममत्व का त्याग करता हूँ। इस अवधि में देव, मनुष्य या तिर्यंच संबंधी जो उपसर्ग उत्पन्न होंगे। उन सभी उपसर्गों को मैं समभाव पूर्वक सहन करूँगा, क्षमा भाव रखूंगा और शांति से झेलूंगा अर्थात् खेद रहित हो कर सहन करूँगा । " विवेचन प्रस्तुत सूत्र में भगवान् ने दीक्षा ग्रहण करने के पश्चात् जो अभिग्रह ग्रहण किया उसका उल्लेख किया गया है। मूल में 'वोसट्टकाएं चत्तदेहे' ऐसे दो शब्द दिये हैं। उनमें से 'वोसट्टकाए' (व्यत्सृष्टकाय) इस शब्द के तीन अर्थ किये गये हैं- यथा १. देह को छोड देना २. शरीर का संस्कार नहीं करना ३. कायोत्सर्ग में स्थित रहना। इन तीन में से पहला अर्थ तो यहाँ ग्रहण नहीं किया गया है क्योंकि इसके लिये आगे 'चत्तदेहे' शब्द दिया है उसका भी अर्थ यही होता है। इसलिये यहाँ पर दो अर्थ ग्रहण किये गये हैं । अर्थात् शरीर का किसी प्रकार सेवा सुश्रूषा आदि संस्कार नहीं करना । कायोत्सर्ग का अर्थ है काया का मन से उत्सर्ग करके एक मात्र आत्म गुणों में लीन रहना । 'चत्तदेहे' का अर्थ है शरीर के प्रति ममत्व एवं आसक्ति नहीं रखना। - Jain Education International - ३२३ - दीक्षा लेते ही श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने यह अभिग्रह धारण किया था कि संयम पालन करते हुए मुझे देव, मनुष्य और तिर्यच सम्बन्धी जो भी उपसर्ग आएंगे उन्हें मैं समभाव पूर्वक सहन करूँगा। यहाँ पर सहन करने के लिए मूल पाठ में चार शब्द दिये हैं। जिनका क्रमशः टीकाकार ने इस प्रकार अर्थ किया है। - १. सम्मं सहिस्सामि - 'मुखादि अविकार करणेण सम्यक् मर्षिष्ये ।' अर्थ - यदि कोई थप्पड घूंसा आदि मारेगा तो मुख में किसी भी प्रकार की विकृति नहीं आने दूंगा अर्थात् मुख को टेड़ा आदि नहीं करूँगा । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004185
Book TitleAcharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages382
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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