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________________ ३२२ आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध भावार्थ - जिस समय भगवान् सामायिक चारित्र ग्रहण कर रहे थे उस समय शकेन्द्र के वचन (आदेश) से देवों के दिव्य स्वर, सभी वादिन्त्रों के निनाद और मनुष्यों के शब्द स्थगित कर दिये गये अर्थात् बंद कर दिये गये, वे सब मौन हो गये। चारित्र अंगीकार करके भगवान् अहर्निश (रात दिन) सब प्राणियों और भूतों के हित में संलग्न हो गए। सभी देवों ने यह सुना तो हर्ष से उनके रोम रोम पुलकित हो उठे। ... तओ णं समणस्स भगवओ महावीरस्स सामाइयं खओवसमियं चरित्तं पडिवण्णस्स मणपजवणाणे णामं णाणे समुप्पण्णे, अड्डाइजेहिं दीवहिं दोहि य समुद्देहि सण्णीणं पंचेंदियाणं पज्जत्ताणं वियत्तमणसाणं मणोगयाइं भावाई जाणेइ। __कठिन शब्दार्थ - मणपजवणाणे - मनःपर्यवज्ञान, वियत्तमणसाणं - व्यक्त मन - वालों के, मणोगयाई - मनोगत। भावार्थ - तत्पश्चात् श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को क्षायोपशमिक सामायिक चारित्र ग्रहण करते ही मनःपर्यवज्ञान नामक ज्ञान उत्पन्न हुआ जिससे वे अढाई द्वीप और दो समुद्रों में स्थित पर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रिय व्यक्त मन वाले जीवों के मनोगत भावों को स्पष्ट जानने लगे। विवेचन - तीर्थंकर भगवान् का जीव पूर्व भव से चव कर जब माता के गर्भ में आता है तब मतिज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान इन तीन ज्ञानों को साथ लेकर आता है और जब दीक्षा अंगीकार करता है उसी समय मनःपर्यव ज्ञान हो जाता है जिससे वह अढाई द्वीप (जम्बू द्वीप, धातकीखण्ड द्वीप और अर्द्धपुष्कर द्वीप) और दो समुद्र (लवण समुद्र और कालोदधि समुद्र) में रहे हुए पर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों के मानसिक भावों को जानने लग जाता है। सभी तीर्थकर भगवन्तों के लिए ऐसा ही नियम है। तओ णं समणे भगवं महावीरे पव्वइए समाणे मित्त णाई सयण संबंधिवग्गं पडिविसज्जेइ पडिविसजित्ता इमं एयारूवं अभिग्गहं अभिग़िण्हइ "बारस वासाई वोसहकाए चत्तदेहे जे केइ उवसग्गा समुप्पजति तंजहा-दिव्वा वा, माणुस्सा वा, तेरिच्छिया वा, ते सव्वे उवसग्गे समुप्पण्णे समाणे सम्म सहिस्सामि सम्म खमिस्सामि सम्म तितिक्खिस्सामि सम्म अहियासइस्सामि।" Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004185
Book TitleAcharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages382
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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