SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 313
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २९६ करणसत्तरि के ७० भेद इस प्रकार हैं। - समवायांग सूत्र पिंड विसोही समिई, भावणा पडिमा इंदिय निग्गहो य । पडिलेहण गुत्तीओ, अभिग्गहं चेव करणं तु ॥ अर्थ ४ प्रकार की पिण्ड विशुद्धि, ५ समिति, १२ भावना, १२ भिक्षु पडिमा ५ इन्द्रियों का निरोध, २५ प्रकार की पडिलेहणा, ३ गुप्ति, ४ अभिग्रह ये सब मिलाकर ७० भेद हुए । - Jain Education International नोट - आचाराङ्ग से लेकर विपाक सूत्र तक विस्तृत सूची श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह बीकानेर के चौथे भाग पृष्ठ ६६ से लेकर २१४ तक दी गयी है । विशेष जिज्ञासुओं को वहाँ देखना चाहिए । से किं तं सूयगड़े ? सूयगडे णं ससमया सूइज्जंति, परसमया सूइज्जंति, ससमय परसमया सूइज्जंति, जीवा सूइज्जंति, अजीवा सूइज्जंति, जीवाजीवा सूइज्जंति, लोगो सूइज्जइ, अलोगो सूइज्जइ, लोगालोगो सूइज्जइ । सूयगडे णं जीवाजीव पुण्ण पावासव संवर णिज्जरण बंध मोक्खावसाणा पयत्था सूइज्जंति । समणाणं अचिरकाल पव्वइयाणं कुसमय मोह मोहमइमोहियाणं संदेहजाय सहजबुद्धिपरिणाम संसइयाणं पावकरमलिण मइगुणविसोहणत्थं असीयस्स किरियावाइयसयस्स चउरासीए अकिरियवाईणं, सत्तट्ठीए अण्णाणियवाईणं, बत्तीसाए वेणइयवाईणं, तिण्हं तेवट्ठीणं अण्णदिट्ठिय सयाणं वूहं किच्चा ससमए ठाविज्जइ, णाणादिट्टंत वयणणिस्सारं सुड्डु दरिसयंता विविह वित्थाराणुगम परम सब्भावगुण विसिट्ठा मोक्खपहोयारगा उदारा अण्णाण तमंधयार दुग्गेसु दीवभूया सोवाणा चेव सिद्धिसुगइगिहुत्तमस्स णिक्खोभ णिप्पकंपा सुत्तत्था । सूयगडस्स णं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणुओगदारा, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ णिज्जुत्तीओ। से णं अंगट्टयाए दोच्चे अंगे, दो सुयक्खंधा, तेवीसं अज्झयणा, तेत्तीसं उद्देसणकाला, तेत्तीसं समुद्देसणकाला, छत्तीसं पयसहस्साइं पयग्गेणं पण्णत्ता । संखेज्जा अक्खरा, अणंता गमा, अनंता पज्जवा, परित्ता तसा, अनंता थावरा सासया कडा णिबद्धा णिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जंति, पण्णविज्जंति, परूविज्जंति, दंसिज्जंति, णिदंसिज्जंति, उवदंसिज्जंति, से एवं आया, एवं णाया, एवं विण्णाया, एवं चरणकरण परूवणया आघविज्जंति, पण्णविज्जंति, परूविज्जंति दंसिज्जंति णिदंसिज्जंति उवदंसिज्जंति, से तं सूयगडे ॥ २ ॥ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy