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________________ २३० समवायांग सूत्र CODER निशीथ सूत्र के उपरोक्त पाठ से यह स्पष्ट होता है - संवत्सरी का एक ही दिन होता है। पहले के सात दिन तो धर्मध्यान कर संवत्सरी के लिये तैयारी करने के हैं । उपरोक्त सारे कथन का निष्कर्ष यह है कि दो सावण होने पर भादवें में और दो भादवा होने पर दूसरे भादवें में संवत्सरी करने का आगम का विधान है। श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने ऐसा ही किया था। जैसा भगवान् ने किया वैसा ही गणधरों ने व आचार्यों ने किया। उनकी परम्परा अभी भी चालू है । अतः चतुर्विध संघ को ऐसा ही करना चाहिये। यही भगवान् की आज्ञा है और इसी में आराधकपना है। दूसरी बात यह भी है कि अवसर्पिणी काल में इन पांच मेघों की वर्षा होती ही नहीं परन्तु संवत्सरी पर्व तो भादवा सुदी पञ्चमी को मनाया ही जाता है। अतः ४९ या पचास दिन से संवत्सरी करने के लिये इन पांच मेघों की युक्ति देना युक्तिसंगत नहीं है। कई यह युक्ति देते हैं कि धर्मकार्य तो पहले ही कर लेना चाहिये। इसलिये संवत्सरी दूसरे सावण में या प्रथम भाद्रपद में कर लेनी चाहिये परन्तु यह युक्ति भी ठीक नहीं है। क्योंकि फिर तो दो आषाढ होने पर प्रथम आषाढ की पूर्णिमा को चौमासी प्रतिक्रमण करके चौमासा लगा देना चाहिये । परन्तु ऐसा कोई भी नहीं करता है। किन्तु दूसरे आषाढ में ही चौमासी प्रतिक्रमण करके चातुर्मास लगाया जाता है। यहाँ पहले आषाढ़ को गौण कर दिया जाता है। इसी प्रकार पहले सावण और पहले भादवे को भी गौण कर देना चाहिये। तब ही आगम के अनुसार संवत्सरी पर्व भादवा सुदी ५ को निश्चित्त रूप से आ जाता है। यह एक दिन (संवत्सरी के लिये) निश्चित्त हो जाता है किन्तु कभी दूसरे सावण में और कभी पहले भादवें में इस प्रकार अनिश्चित फिरती संवत्सरी करना आगमानुसार नहीं है । १५ दिन का पक्ष होता है किन्तु कभी १६ दिन का पक्ष भी हो जाता है तथा कभी १४ दिन का और कभी कभी १३ दिन का भी पक्ष हो जाता है । किन्तु बढ़ी हुई तिथि और घटी हुई तिथि को गौण कर उसे पक्ष मान लिया जाता है इसी प्रकार महीना घंटे या बढ़े तो उसें भी गौण कर देना चाहिये । किन्तु यह ध्यान में रखना चाहिये कि जिस वर्ष एक महीना घटता है उस वर्ष में दूसरे दो महीने बढ़ा देते हैं। इस प्रकार वह वर्ष तेरह महीने का होता है । ११ महीने का कोई वर्ष नहीं होता। इसलिये बढ़े हुए महीने को गौण कर देना चाहिये । श्रमण संघ के युवाचार्य पण्डित रत्न पूज्य श्री मिश्रीमलजी म. सा. 'मधुकरजी' के प्रधान सम्पादकत्व में सम्पादित समवायाङ्ग सूत्र के सित्तरवें समवाय में इस सूत्र की व्याख्या करते हुए संवत्सरी भाद्रपद शुक्ला पंचमी को करने का लिखा है। इन्हीं द्वारा सम्पादित निशीथ Jain Education International For Personal & Private Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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