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________________ समवायांग सूत्र भावार्थ पांच संवत्सर का एक युग होता है, उसमें बासठ पूर्णिमाएँ और बासठ अमावस्याएं कही गई हैं। अर्थात् एक युग में तीन चन्द्र संवत्सर और दो अभिवर्द्धित संवत्सर होते हैं। तीन संवत्सरों के ३६ महीने होते हैं जिनकी ३६ पूर्णिमाएं और ३६ अमावस्याएं होती हैं। दो अभिवर्द्धित संवत्सरों के २६ महीने होते हैं जिनकी २६ पूर्णिमाएं और २६ अमावस्याएं होती हैं। इस प्रकार एक युग में ६२ पूर्णिमाएं और ६२ अमावस्याएं होती हैं । बारहवें तीर्थङ्कर श्री वासुपूज्य स्वामी के बासठ गण और बासठ गणधर थे । ' शुक्लपक्ष का चन्द्रमा प्रतिदिन बासठ भाग बढ़ता है और कृष्ण पक्ष में प्रतिदिन बासठ भाग घटता जाता है। सौधर्म और ईशान देवलोक में पहले प्रतर की पहली पंक्ति में प्रत्येक दिशा में बासठ बासठ विमान कहे गये हैं । सब विमानों के बासठ प्रतर कहे गये हैं अर्थात् सौधर्म ईशान में १३, सनत्कुमार माहेन्द्र में १२, ब्रह्मलोक में ६, लान्तक में ५, शुक्र में ४, सहस्रार में ४, आणत प्राणत में ४, आरण अच्युत में ४, इस प्रकार बारह देवलोकों के ५२ प्रतर हैं। नवग्रैवेयक के ९ प्रतर और पांच अनुत्तर विमानों का १ प्रतर है, कुल मिला कर ६२ प्रतर होते हैं ॥ ६ ॥ २१४ विवेचन - बारहवें तीर्थङ्कर वासुपूज्य स्वामी के ६६ गण और ६६ गणधर आवश्यक सूत्र में बतलाये गये हैं। यह मतान्तर मालूम होता है। तरेसठवां समवाय उभे णं अरहा कोसलिए तेसट्ठि पुव्वसयसहस्साइं महारायमज्झे वसित्ता मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए । हरिवासरम्मगवासेसु मणुस्सा तेसट्ठिए राइदिएहिं संपत्तजोव्वणा भवंति । णिसढे णं पव्वए तेसट्ठि सूरोदया पण्णत्ता । एवं णीलवंते वि ॥ ६३ ॥ कठिन शब्दार्थ- कोसलिए उसभे अरहा कौशल गोत्रोत्पन्न भगवान् ऋषभदेव स्वामी, तेसट्ठि पुव्वसयसहस्साइं - ६३ लाख पूर्व तक, महारायमज्झे वसित्ता राज्य भोग कर । 1 Jain Education International CODIOPIOF - भावार्थ - कौशल गोत्रोत्पन्न भगवान् ऋषभदेव स्वामी ने ६३ लाख पूर्व तक राज्य भोग कर फिर मुण्डित होकर गृहवास छोड़ कर प्रव्रज्या अङ्गीकार की थी । हरिवर्ष और रम्यक वर्ष क्षेत्रों के मनुष्य - युगलिए ६३ रात दिनों में पूर्ण यौवन अवस्था को प्राप्त हो जाते हैं अर्थात् हरिवर्ष और रम्यक वर्ष क्षेत्र में युगलिए ६३ दिन तक अपनी सन्तान का पालन पोषण करते For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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