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________________ चतुर्थ वक्षस्कार - पद्मद्रह २१६ 20-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-14-0-0-0-0-0-00-00-00-00-4-10-100-10-14- -00-00-00-00-00-00-00- -- हैं। इन पर श्रेष्ठ स्वर्णमय स्तूपिकाएं बनी हुई हैं यावत् पुष्पमालाओं पर्यंत वर्णन पूर्ववत् योजनीय है। ..उस भवन का अन्तरवर्ती भूमिभाग अत्यंत समतल एवं रमणीय कहा गया है। यह वैसा ही है जैसा ढोलक का उपरितन चर्मपुट होता है। उसके बीचोंबीच एक विशाल मणिपीठिका बतलाई गई है, जो पांच सौ धनुष लम्बी-चौड़ी तथा अढाई सौ धनुष मोटी है, सर्वथा मणिमय एवं उज्ज्वल है। इस मणिपीठिका के ऊपर एक विशाल शयनिका-शय्या बतलाई गई है, जिसका वर्णन पूर्वानुसार कथनीय है। - यह पद्म अपनी ऊँचाई और विस्तार में आधे प्रमाणयुक्त एक सौ आठ पद्मों से घिरा हुआ है। इन पद्मों का आयाम-विस्तार आधा योजन तथा मोटाई एक कोस है। ये जल में दस योजन गहरे तथा एक कोस ऊपर उठे हुए हैं। इस प्रकार इनकी कुल ऊँचाई दस योजन से कुछ अधिक है। इन पदों का विशेष वर्णन इस प्रकार हैं - इनके मूल वज्ररत्नमय यावत् कर्णिका स्वर्णमय है। यह लम्बाई तथा मोटाई में क्रमश एक कोस एवं आधा कोस है। यह पूर्णतः स्वर्णमय एवं उज्ज्वल है। इस कर्णिका के ऊपर अत्यंत समतल भूमिभाग है यावत् यह मणियों से सुशोभित है। - इस मध्यवर्ती प्रधान पद्म के उत्तर-पश्चिम में वायव्य कोण में, उत्तर में तथा उत्तर पूर्व में श्री देवी के चार हजार सामानिक देवों के चार हजार पद्म बतलाए गए हैं। इसकी पूर्व दिशा में श्रीदेवी की चार महत्तरिकाओं के चार पद्म हैं। इसके दक्षिण पूर्व में श्रीदेवी की आभ्यंतर परिषद् के आठ हजार देवों के आठ हजार पद्म तथा दक्षिण में इसकी मध्यम परिषद् के दस हजार देवों के दस हजार पद्म हैं। दक्षिण-पश्चिम-नैऋत्यकोण में श्रीदेवी की बाह्य परिषद् के बारह सहस्र देवों के बारह सहस्रपद्म हैं। पश्चिम में सात सेनाधिपति देवों के सात पद्म हैं। इस प्रधान पद्म की चारों दिशाओं में श्रीदेवी के सोलह हजार आत्म रक्षक देवों के सोलह हजार पद्म हैं। यह पद्म तीन पद्म परिक्षेपों-कमल परकोटों द्वारा चारों ओर से संपरिवृत है। इन आभ्यतर, मध्यम तथा बाह्य परिक्षेपों में क्रमशः बत्तीस लाख पद्म, चालीस लाख पद्म तथा अडतालीस लाख पद्म हैं। इस प्रकार कुल मिलाकर तीनों पद्मपरिक्षेपों में एक करोड़ बत्तीस लाख पद्म आख्यात हुए हैं। हे भगवन्! यह किस कारण पद्मद्रह कहलाता है? हे गौतम! इस पद्मद्रह में स्थान-स्थान पर अनेक उत्पल यावत् लक्षपत्री संज्ञक कमल विद्यमान हैं। ये वर्ण एवं आभा में पद्मद्रह के समान हैं। यहाँ परमऋद्धि यावत् पल्योपम स्थिति युक्त श्रीदेवी निवास करती है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004179
Book TitleJambudwip Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size9 MB
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