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________________ कण्टक आदि निकालने का निषेध अग्नि का उपसर्ग मासियं णं भिक्खुपडिमं पडिवण्णस्स अणगारस्स केइ उवस्सयं अगणिकाएणं झामेज्जा णो से कप्पड़ तं पडुच्च णिक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, तत्थ णं केइ बाहाए गहाय आगसेज्जा णो से कप्पइ तं अवलंबित्तए वा पलंबित्तए वां, कप्पड़ से अहारियं इत् ॥ ११ ॥ कठिन शब्दार्थ - झामेज्जा - प्रज्वलित कर दे, बाहाए आकर्षित करे - खींचे, अवलंबित्तए - आश्रय लेना, पलंबित्तए - Jain Education International - For Personal & Private Use Only ७९ *** भुजा से, आगसेज्जा - प्रलम्बन करना पकड़ - कर लटकना । भावार्थ - मासिकी भिक्षु प्रतिमा को गृहीत किए हुए अनगार के उपाश्रय में यदि कोई आग लगा दे तो उसे जानकर वह भीतर से बाहर न निकले तथा बाहर से भीतर न आए। (प्रज्वलित उपाश्रय में अवस्थित) भिक्षु को कोई भुजा से पकड़ कर बाहर निकाले तो उसका अवलम्बन या सहारा लेना अथवा उसको पकड़ने का प्रयास करना ( लटकना) नहीं कल्पता वरन्ं ईर्यासमितिपूर्वक निष्क्रान्त होना कल्पता है। विवेचन आगम आदि जैन वाङ्मय में परीषह के साथ-साथ उपसर्ग शब्द का विशेष रूप से प्रयोग प्राप्त होता है। ये दोनों ही क्लेश या कष्ट के सूचक हैं। परीषह प्राय: भूख, प्यास आदि के रूप में स्वगत या स्वोद्भूत कष्ट के लिए प्रयुक्त होता है । उपसर्ग वह कष्ट है, जो किसी बाह्य वस्तु, व्यक्ति आदि के निमित्त से उत्पन्न किया जाता है। शाब्दिक व्युत्पत्ति के अनुसार “उप” उपसर्ग, “सृज्" धातु तथा "धञ्” प्रत्यय के योग से निष्पन्न होता है । "उप" सामीप्य बोधक है। "सर्ग" के अनेक अर्थ हैं, जिनमें एक "आक्रमण" या “हमला" करना भी है। आक्रमण 'पर सापेक्ष' होता है। देव, मानव, तिर्यंच आदि द्वारा उत्पन्न की गई बाधाएं या दिए गए कष्ट आदि इसी कोटि में हैं। जड़ पदार्थों द्वारा भी जो तकलीफ़ पैदा होती है, वह भी इसी प्रकार की है। •कण्टक आदि निकालने का निषेध मासियं णं भिक्खुपडिमं पडिवण्णस्स अणगारस्स पायंसि खाणू वा कंटए वा हीरए वा सक्करए वा अणुपविसेज्जा णो से कप्पड़ णीहरित्तए वा विसोहित्तए वा, . कप्पड़ से अहारियं रीइत्तए ॥ १२ ॥ www.jainelibrary.org
SR No.004177
Book TitleTrini Ched Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages538
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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