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________________ आवश्यक सूत्र - परिशिष्ट द्वितीय आठवाँ व्रत अनर्थदण्ड विरमण में जो कोई अतिचार लगा हो, तो आलोऊं १. काम-विकार जगाने वाली कथा की हो, २. भंड-कुचेष्टा की हो, ३. मुखरी वचन बोला हो, ४. अधिकरण जोड़ रखा हो, ५. उपभोग - परिभोग अधिक बढ़ाया हो, इस प्रकार दिवस सम्बन्धी अतिचारदोष लगा हो तो तस्स आलोउं ( तस्स मिच्छामि दुक्कडं ) । नववाँ व्रत सामायिक में जो कोई अतिचार लगा हो, तो आलोऊं १. मन, २. वचन और ३. काया के अशुभ योग प्रवर्ताये हों, ४. सामायिक की स्मृति न रखी हो, ५. समय पूर्ण हुए बिना सामायिक पारी हो, इस प्रकार दिवस सम्बन्धी अतिचार - दोष लगा हो तो तस्स आलोउं ( तस्स मिच्छामि दुक्कडं ) । दसवाँ व्रत - देशावकाशिक में जो कोई अतिचार लगा हो तो आलोऊं१. नियमित सीमा के बाहर की वस्तु मंगवाई हो, २ भिजवाई हो, ३. शब्द बोल कर चेताया हो, ४. रूप दिखा कर के अपने भाव प्रकट किये हो, ५. कंकर आदि फैंक कर दूसरों को बुलाया हो, इस प्रकार दिवस सम्बन्धी अतिचार दोष लगा हो तो तस्स आलोउं ( तस्स मिच्छामि दुक्कडं ) । ग्यारहवाँ व्रत प्रतिपूर्ण - पौषध में जो कोई अतिचार लगा हो, तो आलोऊं - १. पौषध में शय्या - संस्तारक की प्रतिलेखना न की हो या अच्छी तरह से न की हो, २. शय्या - संस्तारक का प्रमार्जन न किया हो या अच्छी तरह से न किया हो, ३. उच्चार-प्रश्रवण की भूमि को न देखी हो या अच्छी तरह से न देखी हो, ४ उच्चार - प्रश्रवण की भूमि को पूँजी न हो या अच्छी तरह से न पूंजी हो, ५. पौषध का सम्यक् प्रकार से पालन न किया हो, इस प्रकार दिवस सम्बन्धी अतिचार - दोष लगा हो तो तस्स आलोउं ( तस्स मिच्छामि दुक्कडं ) २१६ Jain Education International — - - - अधिकरण- आरम्भ के साधन ऊखल, मुसल, हथियार, औजार आदि । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004176
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages306
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size6 MB
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