SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 236
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रावक आवश्यक सूत्र - बारह व्रतों के अतिचार का परिमाण अतिक्रमण किया हो, ५ कुप्य का परिमाण अतिक्रमण किया हो, इस प्रकार दिवस सम्बन्धी अतिचार - दोष लगा हो तो तस्स आलोउं ( तस्स मिच्छामि दुक्कडं ) । छठा व्रत - दिशापरिमाण में जो कोई अतिचार लगा हो, तो आलोऊं ९. ऊंची दिशा का परिमाण अतिक्रमण किया हो, २. नीची दिशा का परिमाण अतिक्रमण किया हो, ३. तिरछी दिशा का परिमाण अतिक्रमण किया हो, ४. क्षेत्र बढ़ाया हो, ५. क्षेत्र परिमाण के भूल जाने से पथ का सन्देह पड़ने पर आगे चला हो, इस प्रकार दिवस सम्बन्धी अतिचार - दोष लगा हो तो तस्स आलोउं (तस्स मिच्छामि दुक्कडं ) । The सातवां व्रत - उपभोग - परिभोग परिमाण में जो कोई अतिचार लगा हो, तो आलोऊं १. पच्चक्खाण उपरांत सचित्त का आहार किया हो, २. सचित्त प्रतिबद्ध का आहार किया हो, ३. अपक्व का आहार किया हो, ४. दुष्पक्व का आहार किया हो, ५. तुच्छौषधि का आहार किया हो, इस प्रकार दिवस सम्बन्धी अतिचार - दोष लगा हो तो तस्स आलोउं ( तस्स मिच्छामि दुक्कडं ) । - Jain Education International २१५ पन्द्रह कर्मादान - जो श्रावक ( श्राविका ) को जानने योग्य हैं, किन्तु आचरण करने योग्य नहीं हैं, वे इस प्रकार हैं - १. इंगालकम्मे, २. वणकम्मे, साडीकम्मे ४. भाडीकम्मे, ५. फोडीकम्मे, ६. दंतवाणिज्जे, ७. लक्खवाणिज्जे, ८. केसवाणिज्जे, ९. रसवाणिज्जे, १०. विसवाणिज्जे, ११. जंतपीलणक्रम्मे, १२ णिल्लंछणकम्मे, १३. दवग्गिदावणया, १४. सर - दहतलाय - सोसणया, १५. असई - जण - पोसणया, इस प्रकार दिवस सम्बन्धी अतिचार - दोष लगा हो तो तस्स आलोउं ( तस्स मिच्छामि दुक्कडं ) । - जिसमें खाने योग्य अंश तो थोड़ा हो और अधिक फेंकना पड़े उसे "तुच्छौषधि" कहते हैं जैसे - मूंग की कच्ची फली, सीताफल, गन्ना (गंडेरी) आदि । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004176
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages306
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy