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________________ आवश्यक सूत्र - चतुर्थ अध्ययन ३. आयरियाणं आसायणाए (आचार्य आशातना) आचार्य की आज्ञा नहीं मानना, आचार्य को यमपाल जैसा मानना, आचार्य की निंदा करना आदि आचार्य आशातना कहलाती है। १०४ ४. उवज्झायाणं आसायणाए (उपाध्याय आशातना) उपाध्याय को शास्त्र के कीडे, अबहुश्रुत, बाल की खाल निकालने वाले, युगप्रवाह से अपरिचित, चमत्कार विहीन आदि कहना उपाध्याय आशातना है । मानना ५. साहूणं आसायणाए ( साधु आशातना) 'साधु होना नपुंसक होना है।' 'आत्म साधक स्वार्थी हैं', 'कमाना नहीं आया तो साधु हो गये' आदि कहने - मानने से साधु की आशातना होती है। - ६. साहूणीणं आसायणाए (साध्वी आशातना) "स्त्री होने के कारण साध्वियों को नीच बताना । उनको कलह और संघर्ष की जड़ कहना । स्त्री साधु धर्म पाल ही नहीं सकती। स्त्रियां अपवित्र है अतः साध्वियां भी वैसी हैं' - इस प्रकार अवहेलना करना साध्वी की आशाता है। Jain Education International - - ७. सावयाणं आसायणाए ( श्रावक आशातना) 'गृहवास में अंशमात्र धर्म नहीं है, इसलिये श्रावक धर्म आराधक नहीं हो सकता। संसार के प्रपंच में श्रावक क्या धर्म पालते होंगे' - आदि कहने से श्रावकों की अवहेलना होती है, जिसे श्रावक आशातना कहते हैं । ८. सावियाणं आसायणाए ( श्राविका आशातना) 'स्त्रियां कपटी होती है अतः श्राविका क्या धर्म पालेगी ? धर्मस्थान में इकट्ठी होकर दुनिया भर की निंदा करती है।' 'निठल्लियों को घर में कार्य नहीं है सो मुंह बांध कर बैठ जाती है' ' श्राविका गृहकार्य में लगी रहती है, आरंभ में ही जीवन गुजारती है, बाल बच्चों के मोह में फंसी रहती है, उनकी सद्गति कैसे होगी?' इत्यादि कहना श्राविकाओं की अवहेलना है। जो त्याज्य है । ९. देवाणं आसायणाए (देव आशातना) देवताओं को कामगर्दभ कहना, उन्हें आलसी और अकिंचित्कर कहना, देवता मांस खाते हैं, मद्य पीते हैं इत्यादि निंदास्पद सिद्धांतों का प्रचार करना, देवताओं का अपलाप - अवर्णवाद करना, देव आशातना है । १०. देवीणं आसायणाए (देवी आशातना) - देवों की तरह ही देवियों का अपलाप एवं अवर्णवाद करना देवी आशातना है। ११-१२. इहलोगस्स आसायणाए, परलोगस्स आसायणाए ( इहलोक और परलोक - - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004176
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages306
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size6 MB
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