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________________ 48 जैनन्यायपञ्चाशती प्रत्यभिज्ञा का समीचीन उदाहरण है। यहां यह भी कहा जा सकता है कि प्रत्यभिज्ञा का लक्षण तत्पद और इदम्पद से युक्त होता है। आचार्य हेमचन्द्र ने भी इस तथ्य को इस प्रकार प्रतिपादित किया है'दर्शनस्मरणसंभवं तदेवेदं, तत्सदृशं, तद्विलक्षणं, तत्प्रतियोगीत्यादिसंकलनं प्रत्यभिज्ञानम्।' भिक्षुन्यायकर्णिका में भी इसी के समानार्थक ही प्रत्यभिज्ञा का लक्षण उपलब्ध होता है-'अनुभवस्मृतिसंभवंतदेवेदं, तत्सदृशं, तद्विलक्षणं, तत्प्रतियोगीत्यादिसंकलनं प्रत्यभिज्ञा।' वहां कहा गया है- 'अनुभव और स्मृति के योग से उत्पन्न संकलनात्मक ज्ञान को प्रत्यभिज्ञा कहा जाता है।' 'यह वही है', 'वह उसके समान है', 'यह उससे विलक्षण है', 'यह उसका प्रतियोगी है'-ये सब प्रत्यभिज्ञा के उदाहरण हैं। इसका तात्पर्य है कि प्रत्यभिज्ञा संकलनात्मक ज्ञान है। आचार्य हेमचन्द्र ने और 'भिक्षुन्यायकर्णिकाकार' आचार्य तुलसीगणी ने भी इस संकलनात्मक तथ्य का आलम्बन लेकर प्रत्यभिज्ञा का लक्षण इस प्रकार किया है-दर्शन और स्मरण दोनों के मेल से होने वाला जो संकलनात्मक ज्ञान 'तदेवेदम्', 'तत्सदृशम्', 'तविलक्षणम्', तत्प्रतियोगी- इन रूपों में होता है वही प्रत्यभिज्ञा है। यहां सूत्र में जो 'दर्शन' अथवा 'अनुभव' पद का प्रयोग हुआ है उससे ज्ञान की प्रत्यक्षता व्यक्त होती है और 'स्मृति' पद से ज्ञान की पूर्वकालिकता। प्रत्यभिज्ञा के उदाहरण इस प्रकार हैं, जैसे 'दर्शनस्मरणसंभवम् अथवा अनुभवस्मृतिसंभवं च सोऽयं भिक्षुः''यह वही भिक्षु है।' यहां 'अयम्' पद से 'भिक्षु' होने का प्रत्यक्ष ज्ञान होता है और 'सः' पद से पूर्व में देखे हुए भिक्षु की स्मृति होती है। इस रीति से यह एक संकलनात्मक ज्ञान है। • तत्सदृशम् तत्प्रतियोगि वा-'गाय के समान गवय है'–यहां गवय प्रत्यक्ष है और सादृश्य के प्रतियोगी के रूप में गाय का स्मरण होता है, यह तत्सदृश और तत्प्रतियोगी का उदाहरण है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004165
Book TitleJain Nyaya Panchashati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishwanath Mishra, Rajendramuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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