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________________ बोरड .. अंबागढ़ में पमार क्षत्रिय वोरड़ राजा "शिव" के साक्षात् दर्शन करने को तीब्राभिलाषी था। पर कोई उसे दर्शन नहीं करा सका । उसने जब महा-प्रभावक श्री जिनदत्तसूरिजी का नाम सुना तो उनके पास जाकर "भगवान शिव के दर्शन कराने के लिए निवेदन किया।" सूरिजी ने कहा-यदि उनका वचन मानो तो मैं तुम्हें दर्शन करा सकता हुँ । राजा ने कहा-भगवान् रुद्र का वचन मुझे स्वीकार्य है। तदनन्तर राजा सूरिजी के साथ शिवालय में गया सूरिजी ने शिवलिंग के समक्ष राजा की एकाग्र दृष्टि करवायी। देखते ही देखते उसमेंसे धुंआ निकला और त्रिशूलधारी शिव प्रकट हुए । शिव ने कहा-राजन् ! मांगो ! मांगो !! राजाने कहा भगवन् ! आप प्रसन्न हैं तो मोक्ष दीजिये ! शिवने कहा-वह तो मेरे पास नहीं है, अन्य इच्छा हो सो कहो, पूर्ण करूं! यदि शास्वत निर्वाण चाहते हो तो इन गुरु महाराज के वचनानुसार सेवनआचरण करो! शिव के अन्तर्धान हो जाने पर राजा बोरड़ ने गुरु महाराज के चरणों में वंदन कर मोक्ष का उपाय पूछा सूरिजीने नवतत्व, सम्यक्त्ववादि स्वरुप बताकर उसे मोक्ष दायक धर्म का उपदेश दिया। राजा ने सं १११५ में जैनधर्म स्वीकार किया उसका वंश बोरड़ प्रसिद्ध हुआ । पोकरणा हरसोर में सकतसिंह राठौड़ रहते थे, वे एकवार यात्रा के लिए पुष्करजी गये । वहां चार पुत्रों के साथ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004163
Book TitleJainacharya Pratibodhit Gotra evam Jatiyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherJinharisagarsuri Gyan Bhandar
Publication Year
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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