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________________ ४१ प्राप्त कर सांप हुआ हुँ। मैंने सम्यक्त्व मूल व्रत स्वीकार करके समाधि प्राप्त की। मंत्रोच्चार पूर्वक होम करने पर मैं नागकुमार देव हुआ । यह यज्ञ करनेवाला शिवभूति ब्राह्मण गलित कोढ से मरकर प्रथम नरक में चौरासी हजार वर्षायु पूर्ण कर किसी वन में बन्दर हुआ। मुनिराज की धर्मदेशना सुनकर जाति-स्मृति पाकर सरल भाव से मर के मन्त्रि-पुत्र हुजा है । मैंने अवधिज्ञान में अपना वैरी ज्ञात कर बदला लेनेके लिए इसे काटा है । सूरिजी ने कहा-कृत कर्म से छुटकारा नहीं होता, यह अब श्रावक हो गया है अतः इसे निर्विष करो। देव ने उसका विष हरण कर स्वस्थ कर दिया । सं० ११९३ में मन्त्री सकुटुम्ब जैन हुआ, सूरिजी ने 'लूणिया' गोत्र की स्थापना की। . दोसी सोनीगरा पीपलिया विक्रमपुर में सोनिगरा ठाकुर हीरसेन सन्तानरहित था । उसने क्षेत्रपाल के सवा लाख दीनारों की मनौती की, दैव योग से उसके पुत्र हो गया पर मानता पूर्ति करने में असमर्थ होने से क्षेत्रपाल उसके यहाँ उपद्रव करने लगा। संयोगवश श्री जिनदत्तसूरिजी विक्रमपुर पधारे, ठाकुर ने उनसे पुत्र का उपद्रव निवारणार्थ निवेदन किया। . सूरिजीने कहा- जैन धर्म स्वीकार करने पर तुम्हारा पुत्र स्वस्थ हो. जायगा । उसने सहर्ष जैनधर्म स्वीकार किया । सूरिजी ने उसे स्वस्थ कर सं० ११९७ में दोसी सोनीगरा गोत्र की स्थापना की । हीरसेन, सोवनसिंह जैन हुए उसका पुत्र पीउला से 'पीपलिया' हुए । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004163
Book TitleJainacharya Pratibodhit Gotra evam Jatiyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherJinharisagarsuri Gyan Bhandar
Publication Year
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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