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________________ 50. उप्पज्जदि जदिणाणं कमसो अटे पडुच्च णाणिस्स। तं णेव हवदि णिच्वं ण खाइगं व सव्वगदं।। उप्पज्जदि जदि यदि णाणं कमसो पडुच्च णाणिस्स . का (उप्पज्ज) व 3/1 अक उत्पन्न होता है अव्यय (णाण) 1/1 .. ज्ञान अव्यय ... · क्रम से. (अट्ठ) 2/2 . . पदार्थों को (पडुच्च) संकृ अनि . अवलम्बन करके (णाणि) 6/1 वि ज्ञानी. का (त) 1/1 सवि वह . अव्यय न ही (हव) व 3/1 अक. होता है (णिच्च) 1/1 वि न (खाइग) 1/1 वि क्षायिक अव्यय न ही (सव्वगद) 1/1 वि सर्वव्यापक हवदि णिच्वं नित्य अव्यय खाइगं णेव सव्वगदं अन्वय- जदि णाणिस्स णाणं अट्टे पडुच्च कमसो उप्पज्जदि तं णेव णिच्चं ण खाइगं णेव सव्वगदं हवदि। अर्थ- यदि ज्ञानी का ज्ञान पदार्थों को अवलम्बन करके क्रम से उत्पन्न होता है (तो) वह (ज्ञान) न ही नित्य, न क्षायिक (कर्मों के नाश से उत्पन्न), (और) न ही सर्वव्यापक होता है। (62) प्रवचनसार (खण्ड-1) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004158
Book TitlePravachansara Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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