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________________ 16. तह सो लद्धसहावो सव्वण्हू सव्वलोगपदिमहिदो। भूदो सयमेवादा हवदि सयंभु त्ति णिद्दिद्यो॥ . सो अव्यय तथा (त) 1/1 सवि वह लद्धसहावो [(लद्ध) भूकृ अनि- स्वभाव प्राप्त कर (सहाव) 1/1] लिया गया सव्वण्हू (सव्वण्हु) 1/1 वि सर्वज्ञ सव्वलोगपदिमहिदो [(सव्व) सवि-(लोग)-(पदि) समस्त लोक के (मह-महिद) भूकृ 1/1]. अधिपतियों द्वारा पूजा गया (भूद) भूक 1/1 अनि हुआ सयमेवादा [(सयं)+(एव)+(आदा)] सयं (अ) स्वयं स्वयं एव (अ)= ही आदा (आद) 1/1. आत्मा (हव) व 3/1 अक होता है सयंभु त्ति [(सयंभु)+(इति)] सयंभु' (सयंभू) 1/1 स्वयंभू इति (अ) = इस प्रकार इस प्रकार णिट्ठिो (णिद्दिट्ठ) भूकृ 1/1 अनि कहा गया ही हवदि अन्वय- लद्धसहावो सव्वण्हू सव्वलोगपदिमहिदो तह सयमेव भूदो सो आदा सयंभु हवदि त्ति णिद्दिट्ठो। अर्थ- (जिसके द्वारा) (मूल) स्वभाव प्राप्त कर लिया गया (है), (जो) सर्वज्ञ (है), (जो) समस्त लोक के अधिपतियों द्वारा पूजा गया (है) तथा (जो) स्वयं ही हुआ (है)- वह आत्मा स्वयंभू होता है। (जो) इस प्रकार कहा गया (है)। 1. सयंभु- आगे संयुक्त अक्षर आने से दीर्घ का ह्रस्व हुआ है। (28) प्रवचनसार (खण्ड-1) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004158
Book TitlePravachansara Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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