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________________ नया जैन रहने आता तो उसको प्रत्येक घर से एक स्वर्णमुद्रा व एक ईंट दी जाती थी जिससे रहने के लिये मकान बनता था और आनेवाला लखपति बन जाता था। इसी से मांडवगढ़ की सम्पन्नता का अनुमान लगाया जा सकता है। .. (5) धार : धार मालवा के पराक्रमी और संस्कार प्रिय राजा मुंज और प्रसिद्ध विद्वान राजा भोज की राजधानी थी। धनपाल जैसा प्रकाण्ड विद्वान भी यहीं की राजसभा की शोभा था। इसी धनपाल के बनाये ग्रंथ आज जैन साहित्य की अमूल्य निधि है। राजा भोज के समय कितने ही जैनाचार्य यहां आकर रहे थे। सन् 1310 ई. में जयसिंह चतुर्थ तक यह परमारों के आधिपत्य में रही फिर इस पर मुसलमानों का अधिकार हो गया। सन् 1325 में मुहम्मद तुगलक ने पहाड़ी पर एक किला बनवाया था। मुस्लिम शासनकाल में कितने ही हिन्दू और जैन मंदिर खंडित किये गये और अनेक को मस्जिदों में परिवर्तित कर दिया गया जिसका उदाहरण भोज द्वारा निर्मित भोजशाला है। मुसलमानों के अत्याचारों से यहां के जैनियों की संख्या घटने लगी थी। अभी यहां पर्याप्त मात्रा में श्वेताम्बर जैन मूर्तिपूजक रहते हैं। एक मंदिर बनियाखेड़ी में है जो प्राचीन है। मूलनायक आदीश्वर की प्रतिमा श्वेतवर्णी है तथा 4-5 फुट ऊंची है जिस पर सं.1203 का लेख है। इसमें क्षेत्रसूरि द्वारा मूर्ति प्रतिष्ठित करवाने का उल्लेख है। इसके अतिरिक्त इस मंदिर में और भी प्रतिमाएं हैं जिन पर संवत् 1362, 1328 और 1547 के लेख हैं। जब ये प्रतिमाएं प्रतिष्ठित की गई थी। धार वैसे परमार राजाओं की राजधानी रही है जिसके परिणाम स्वरूप अनेक जैन और जैनेतर विद्वानों का यह केन्द्र थी। परमार काल में यहां संगमरमर का जैन मंदिर भी बना। ___(6) बावनगजा - बड़वानी : खरगोन जिले का यह प्रसिद्ध नगर दिगम्बर मतावलम्बियों का तीर्थस्थान है। दिगम्बर परम्परा के अनुसार यहां से दक्षिण की ओर चूलगिरि शिखर से इन्द्रजित, कुम्भकर्ण आदि मुनि मोक्ष पधारे। इस स्थान का नाम सिद्धनगर भी है। यह सिद्धक्षेत्र है। यहां से साढ़े पांच करोड़ मुनि मोक्ष गये बताये जाते हैं। चूलगिरि पर्वत के नीचे दो जैन मंदिर और दो जैन धर्मशालाएं हैं। एक मंदिर में बावनगजाजी (आदिनाथजी) की पहाड़ में खोदी 84 फुट ऊंची मूर्ति है। लोग इसे कुंभकर्ण की मूर्ति कहते हैं। पास में इन्द्रजित की मूर्ति है। पर्वत पर 22 जैन मंदिर और एक चैत्यालय है।" संवत् 1223 में इस 84 फुट ऊंची मूर्ति का जीर्णोद्धार हुआ था। मंदिरों के जीर्णोद्धार का समय वि.सं.1233, 1380 एवं 1580 है। प्रतिष्ठाचार्यों के नाम नन्दकीर्ति और रामचन्द्र है। संवत् 1223 में मूर्ति 194. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004157
Book TitlePrachin evam Madhyakalin Malva me Jain Dharm Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTejsinh Gaud
PublisherRajendrasuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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