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________________ है। चीनी यात्री हुएनसांग जब मालवा में आया था तब मालवा विद्या का केन्द्र था। ई.सन् की सातवीं शताब्दी तक मालवा अवन्ति के नाम से पहिचाना जाता था। अवंति का उज्जैन नाम किस प्रकार पड़ा इस सम्बन्ध में श्री दयाशंकर दुबे अपनी पुस्तक "भारत के तीर्थ" में इस प्रकार लिखते हैं: ___ "अवंतिका में राजा सुधन्वा राज करता था, वह जैन धर्मावलम्बी था। उसके समय में अवंतिका एक विशाल नगरी थी। इसका प्राचीन नाम परिवर्तन करके उज्जैन नाम रखा तभी से यह नगरी उज्जैन नाम से विख्यात हुई। राजा सुधन्वा के समय नगरी जैनियों का एक प्रधान केन्द्र बन गई थी।" भगवान महावीर के समय में चण्डप्रद्योत यहां का राजा था, वह जैन धर्मावलम्बी था। वह सिंध सोवीर के राजा उदायन के पास की जीवंतस्वामी की मूर्ति ले आया और उसके स्थान पर एक दूसरी चन्दन निर्मित मूर्ति बनवाकर रखवा दी। यह जीवंतस्वामी की मूर्ति बाद में उज्जैन में रही जिसकी यात्रा के लिये जनता यहां आती रहती थी। अशोक यहां प्रांतीय शासक रह चुका था। उसका पुत्र कुणाल भी यहां का शासक था। कुणाल के उपरांत उसका पुत्र सम्प्रति यहां का शासक हुआ। सम्प्रति के समय आर्य सहस्तिसरि जीवंतस्वामी की मूर्ति के दर्शन करने यहीं आये थे। आर्य सुहस्तिसूरि ने सम्प्रति को जैनधर्म की दीक्षा दी। सम्प्रति ने जैनधर्म की उन्नति के लिये अथक प्रयास किया। वृहत्कल्प भाष्य-गाथा 3277 की टीका में क्षेमकीर्ति (वि.सं:1332) बताते हैं: जीवन्तस्वामि प्रतिमावन्दनार्थपुज्ययिन्यामार्यसुहास्तिन आगमन।। वृहत्कल्प सूत्रभाष्य भाग 3, पृष्ठ 917-18 आचार्य चण्डरुद्र, आचार्य भद्रगुप्त आर्यरक्षितसूरि, आर्य आषाढ़ आदि आचार्यों ने यहीं विहार कर जैनधर्म की धारा को प्रवाहित रखा। इनके बाद विक्रम संवत् के प्रारम्भ के पूर्व आचार्य कालकसूरि ने राजा गर्दभिल्ल को सिंहासन से अलग करवाकर उसके स्थान पर शकों को सिंहासन दिलाने में सहायता की। बाद में शकों को पराजित कर विक्रमादित्य ने राजसत्ता की बागडोर अपने हाथ में ली। विक्रम संवत् का प्रारंम्भ श्री कालकाचार्य की कृपा का ही परिणाम है। सिद्धसेन दिवाकर विक्रमादित्य की राज्यसभा के एक प्रकाण्ड विद्वान रत्न थे। इस नगरी की प्रसिद्धि तो वैसे अनेक रूप में है किन्तु जिन घटनाओं के कारण उज्जैन जैनतीर्थ जाना जाता है उनका उल्लेख यहां अनिवार्य है। यहां अवंति सुकुमाल का स्मारक है। आर्य सुहस्तिसूरि ने यहीं अवंति पार्श्वनाथ के मंदिर की स्थापना की जिसकी पृष्ठभूमि में अवंति सुकुमाल और उसकी 312 [891 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004157
Book TitlePrachin evam Madhyakalin Malva me Jain Dharm Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTejsinh Gaud
PublisherRajendrasuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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