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________________ अध्याय - 6 मालवा में जैनतीर्थ .. ___ जैनधर्म में मुख्य रूप से दो शाखाएं हैं, एक श्वेताम्बर तथा दूसरी दिगम्बर। इन दोनों ही सम्प्रदायों के अपने-अपने मंदिर हैं तथा इनके तीर्थस्थान भी अलग ही हैं। कहीं-कहीं जो बड़े एवं ऐतिहासिक स्थान हैं, दोनों ही सम्प्रदाय उन्हें अपना तीर्थ मानते हैं। मालवा के जैन तीर्थों का परिचय प्राप्त करने के पूर्व यह आवश्यक है कि हम पहले जैनधर्म में तीर्थों के भेद जान लें। पं.नाथूराम प्रेमी' का कथन है- "दिगम्बर सम्प्रदाय के तीर्थों के दो ही भेद किये जाते हैं। एक तो 'सिद्धक्षेत्र' जहां से तीर्थकर या दूसरे महात्मा सिद्ध पद या निर्वाण को प्राप्त हुए और दूसरे 'अतिशय क्षेत्र' जो किसी मूर्ति या तत्रस्थ देवता के किसी अतिशय के कारण बन गये हैं या जहां मंदिरों की बहुलता के कारण दर्शनार्थी अधिक जाने लगे हैं और इस कारण उनका अतिशय बढ़ गया है। तीर्थंकरों की गर्भ, जन्म, ज्ञान भूमियां भी तीर्थ है, पर वे उक्त दो भेदों में अन्तर्मुक्त नहीं होती।" इस प्रकार जैनधर्म में तीन प्रकार के तीर्थ कहे गये हैं। किन्तु वास्तविक रूप में वे दो ही हैं। मालवा में दिगम्बर एवं श्वेताम्बर दोनों ही सम्प्रदायों के तीर्थ स्थानों का बाहुल्य है जिनका परिचय नीचे दिया जा रहा है। (1) उज्जैन : भारत की प्राचीन नगरियों में से एक उज्जैन है। प्राचीनकाल में इस महानगरी के अनेक नाम हमें मिलते हैं। यथा- प्रतिकल्पा, अवंतिका, भोगवती, हिरण्यवती, कनकशृंगा, कुशस्थली, कुमुद्वती, उज्जयिनी, अमरावती, विशाला आदि। विदेशी पर्यटकों ने इस अन्य नामों से सम्बोधि किया है। मि.ल्ययार्ड ने इसका नाम नवतेरी और शिवपुरी लिखा है। सुप्रसिद्ध इतिहासवेत्ता डॉ.भगवतशरण उपाध्याय के शब्दों में यह नगरी न केवल धार्मिक महत्त्व रखती है वरन् यातायात में उत्तर-दक्षिण को जोड़ती भी है।' उज्जैन वैसे तो मोक्षदायिनी अवंतिका के नाम से परिचित एक तीर्थ नगरी है ही, किन्तु जैन तीर्थ के रूप में भी यह प्रसिद्ध है।जैन तीर्थ सर्वसंग्रह में उज्जैन का वर्णन इस प्रकार मिलता है। ___मालवा की प्राचीन राजधानी वाला यह नगर दक्षिणापथ का प्रमुख नगर 1881 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004157
Book TitlePrachin evam Madhyakalin Malva me Jain Dharm Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTejsinh Gaud
PublisherRajendrasuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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