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________________ धर्म तो बंध के अभाव का नाम है जहाँ बंधन प्राप्त हो वह वास्तविक धर्म नहीं है। फिर भी यदि इतनी उच्च भूमिका में स्थापित नहीं हो पा रहे हैं तो कम से कम पाप बंध तो न करें, बंधन भी हो तो वह पुण्य’ का तो रहे । इसलिए आचार्य श्री की यह सूक्ति हमारा लक्ष्य हो सकती है जिसमें वो कहते हैं कि 'वंदना करना, बंध न करना' (पृ० 8) शास्त्रों में मिथ्यात्व के भेदों में विनय मिथ्यात्व' भी एक मिथ्यात्व है। 'विनय' और 'विनय तप' की भी चर्चा है। जिन्होंने खुद की विनय नहीं की उनकी विनय करना यह 'विनय' मिथ्यात्व है। जिन्होंने खुद की विनय की उनकी विनय करना 'विनय' है और स्वयं की विनय करना यह विनय तप' है। मूलाचार के आवश्यक अधिकार में विनय का लक्षण करते हुए लिखा हैजह्या विणेदि कम्मं अट्टविहं चाउरंगमोक्खो य। तह्या वदंति विदुसो विणओत्ति विलीण संसारा॥ (गाथा – 7) अर्थात् जिससे आठ प्रकार का कर्म नष्ट हो जाता है और चतुरंग संसार से मोक्ष हो जाता है उसे संसार विलीन पुरूष विनय' कहते हैं। अतःशुद्धात्मा की वंदना ही वह वंदना है जिसमें बंधना नहीं है। हमें पूजा-वंदना किसकी करनी? यह प्रश्न हो तो आचार्य प्रवर का यह प्रतिज्ञा वाक्य हमें राह दिखा सकता है जिसमें वो यह दुहराते हैं "मैं पालनहार को नहीं पूजता हूँ, मैं मारनहार को नहीं पूजता हूँ। जो न मारे न पाले, ऐसे वीतरागी को पूजता हूँ' (पृ० 18) - मोक्षमार्ग में चलने वाला जीव भी कभी-कभी सांसारिक व्यवस्थाओं के चक्कर में पड़कर अपना दुर्लभ मनुष्यभव खराब करने में लगा रहता है। आचार्य : प्रवर की यह सूक्ति ऐसे जीवों को महत्वपूर्ण संदेश देती प्रतीत हो रही है "मोक्षमार्ग व्यवस्थाओं का मार्ग नहीं है, मोक्षमार्ग व्यवस्थित रहने वालों का मार्ग है।” (पृ० 29) वर्तमान में पंचमकाल चल रहा है। पंचमकाल में मोक्ष नहीं है यह सभी को पता है, पंचमकाल के कुछ एक दोष भी सभी को ज्ञात हैं किन्तु वर्तमान में पंचम काल की स्वरूप देशना विमर्श (67 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004155
Book TitleSwarup Deshna Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shraman Sanskruti Seva samiti
Publication Year
Total Pages264
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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