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________________ प्रमाण प्रत्यक्ष आगम (अपेक्षित श्रुत तर्क) परमार्थ प्रत्यक्ष सांव्यावहारिक (परमार्थ परोक्ष) अवधि मनःपर्यय केवल शब्द लिंगज अर्थ लिंगज (अनुमान) स्वार्थ परार्थ पूर्ववत् शेषवत् सामान्यतो दृष्ट ' पक्ष हेतु उदाहरण उपनय निगमन नोट- स्वार्थ और परार्थ के स्वरूप और भेदों में अपेक्षा दृष्टि से न्यायवाङ्मय में अन्तर भी है जो तद् विषयक ग्रन्थों से अवगम्य है। ___ अपने जैन न्याय को सम्मत कर तत्त्व निर्णय करने की श्रद्धा मूलक शैली जिसमें पर मत के मन्तव्यों को प्रकट नहीं किया जाता है वह आक्षेपिणी कथा कहलाती है। सामान्य जन कहीं पर मत के तर्कों से प्रभावित होकर उन्हें ही स्वीकार कर मिथ्यादर्शन अंगीकार न कर ले इसी निमित्त से उसे आक्षेपिणी कथा केक उपदेश की मात्र आवश्यकता है। इस दृष्टि से निम्न तालिका दृष्टव्य है- तालिका नं02 प्रमाण . परोक्ष प्रत्यक्ष मतिज्ञान श्रुतज्ञान स्मृति, संज्ञा, चिन्ता (तर्क-आगम) . अभिनिबोध अवधि मनःपर्यय केवल . अवाय धारणा अवग्रह ईहा स्वरूप देशना विमर्श 17 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004155
Book TitleSwarup Deshna Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shraman Sanskruti Seva samiti
Publication Year
Total Pages264
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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