SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 642
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम “उत्तराध्ययनानि"- मूलसूत्र-४ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:) अध्ययनं [१०], मूलं [--] / गाथा ||६२...|| नियुक्ति: [२८४-३०६] (४३) उत्तराध्य. बृहद्वृत्तिः ॥३२१॥ प्रत सूत्रांक ||२|| सोऊण तं भगवओ गच्छइ तहि गोअमो पहिअकित्ती । आरुहइ तं नगवरं पडिमाओ बंदइ जिणाणं २९१ दुमपत्रकअह आगओ सपरिसो सविड्डीए तहिं तु वेसमणो। वंदित्तु चेइयाई अह वंदइ गोअमं भयवं ॥२९॥ मध्ययनं. अह पुंडरीअनायं कहेइ तहि गोयमो पहियकित्ती । दसमस्स य पारणए पवावेसीअ कोडिन्नं ॥२९३॥ तस्स य वेसमणस्सा परिसाए सुरवरो पयणुकम्मो। तं पुंडरीयनाय गोयमकहिअंनिसामेइ ॥२९॥ चित्तूण पुंडरीअं वग्गुविमाणाओ सो चुओ संतो। तुंबवणे धणगिरिस्सा अजसुनंदासुओ जाओ २९५४ दिन्ने कोडिन्ने या सेवाले चेव होइ तइए य । इकिकस्स य तेसिं परिवारो पंच पंच सया ॥ २९६ ॥ हेछिल्लाण चउत्थं मझिल्लाणं तु होइ छटुं तु । अट्टममुवरिल्लाणं आहारो तेसिमो होइ ॥ २९७ ॥ कंदाई सञ्चित्तो हिटिल्लाणं तु होइ आहारो । बीआणं अञ्चित्तो तइआणं सुक्कसेवालो ॥ २९८ ॥ तं पासिऊण इडिं गोयमरिसिणो तओ तिवग्गावि । अणगारा पवइआ सप्परिवारा विगयमोहा २९९|| ॥३२॥ एगस्स खीरभोअणहेऊ नाणुप्पया मुणेयवा । एगस्स परिसादसणेण एगस्सय य जिणंमि ॥ ३०॥ केवलिपरिसं तत्तो वच्चंतागोयमेण भणिआ य । इउ एह वंदह जिणं कयकिच्च जिणेण सो भणिओ ३०१ दीप अनुक्रम [२९० RRRRRRK wwwrammam.au मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [४३], मूलसूत्र - [४] "उत्तराध्ययनानि" मूलं एवं शान्तिसूरि-विरचिता वृत्ति: ~641~
SR No.004145
Book TitleAagam 43 UTTARAADHYAYANAANI Moolam evam Vruttii
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2015
Total Pages1428
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size288 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy