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________________ आगम (३८/२) “पंचकल्प” - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य) ---------- भाष्यं [२५५०] ----------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य प्रत सूत्राक [२६११] दीप सीलचि(वि)वचा को जो पक्षणहसं ॥९॥ पदिसेवकप एसो बाहुणा बोच्छमणुवासणाकाप । अणुवास मासकप्पो वासावासी इमेसित ॥२५५०४ जिण धेर प्रहाल परिहरित अज मासको । सेने कालमवसाय का विवाहणे व जाण ॥१॥ एएलि पंचकृषि अयोग्णस उपापदेहिता सेतादीहि विसेसो जह तह वोच्छ समासेणं ॥२॥णस्थि उ खितं जिणकप्पियाण उपद मासकालो उ। पासासं चउमासा पसही अपमानपरिकम्मा ॥३॥पियो तुअलेक्कही गहर्णत एसणाहुरिमाहि। तस्थवि काउमभिगाह पंच अण्णतरियाए॥४॥राण अस्थि खेन त उही जाब जोयण सकोस । गगरे पुण पसहीए निकाले उदि मासो ॥५॥ उसाम्रोण म मिजो अपवाएणं तु होज अहिजोषि। एमेव य वासामुवि परमासो होज अहिमोचि ॥६॥अममननपरिकम्मो उक्स्सो एत्य भंग पाउरो उ। उस्सम्गेण पदमो लिणि उ सेसाऽपावणं ।। ७० भनं यकई बाउलेवार बावि .. उमेईति। सत्साहिवि एसणादि साविपरसो गयावासोनि ॥८॥अहलंदियाण गयो अग्यविनवाण जह जिगाणं तु गवरं कालविसेसो उचासे पणाचलमासो॥९॥गई पतिपदाणं अहलंदी भह पुष विसेसो । उगह। जो Bासि तू सो आयरियाणामवति ॥२५६०॥ एगपतहीएं पण उनीहीनोच गाम कुवंति। दिवसे दिवसे अग्णं अति मीहीड नियमेणं ॥१॥ परिहारविमुद्रीणं जहेर जिणकपियाण गाना आयंबिल नु मनं गिहनी वासकर्ष लाच॥२॥ अजाण परिणदिवाण उपाहो जो उसोनुआयरिए। काले दो दो मासा उपदे तासि कप्पो 318०१५६॥३॥ सेसं जह राणं पिडो व उनम्सओ य तह नासि। सो सोषिष पिहो जिणकालो बेरकप्पो य॥४॥ जिणकप्पियनालंदियपरिहारविसबियाण जिणकप्यो। येराणं अजाण यबोसो घेरकप्पो उ॥५॥ दुविहो यमासकप्पो जिनकप्पो चेप घेरकायो या निरणुग्नहो जिणार्ण घेराण अणुमाहपपत्तो ॥६॥ उदासकालनीते जिणकप्पी M गुरुग गुरुया बाहोति विणग्यि दिशम्मी राणं ते विष लाओ (विराण से विय लहुगलहगा)।अनीस पराबाहे पुढो अणुवासिय अणुवसंतो। जे जत्थ पदे दोसा ते तत्वयगो समारणे ॥ ८॥ पाणरसम्ममदासा दस एलणदोस एते पणुचीसं । संजोयनादि पंच य एते तीस तु अपराहा ॥९॥ एएहिं दोसेहिं जा असंपत्ति लगाती तहनि। विचले दिवसे सो खलु कालातीते वसंतो उ ॥२५७०॥ पासापासपमाणं आयारे उप्पमाणितं कर्ष। एवं अम्मुर्यती व जाणम् अणुवासकर्ष तु॥१॥आचारपकप्पम्मी जह मणितं नीति संपसतोपि। होइ अगुवासकायो तह संपसमाणऽयोसा उ॥२॥ दुविहे विहारकाले बासापासे तहेच उदे। मासानीने अणुपाहि पासानीने भो उपही ॥३॥ उदु बबिएस बहस तीते ताथ बास ग उकये। पेतृणं उपही लाल पासातीतेस कापतितावासाउदुब्रहालदे इत्तरि साहारणे पुहुने या उम्गहसंकमण वा अण्णोष्णलकासहिजने १७आवासामुक्तम्मासो उद्दे मासों संद A पंच विणा। इसरिउ रक्समूले बीसमणहा ठिकाणं तु॥६॥साहारणा उ एते समहि(मगठि)याणे बहण गमछान। एकण परिगहिया सबे चोहित्तिया हॉति ॥आसंकमणमण्यमण्णा सकासे जाउने अधीने सुतायतदुभयाई मो. अवापि परिपुचो ॥८॥ ते पुण मंडलियाए आवलियाए पतं तु मिन्टेजा। मंडलियमहिनते सचिलादी उजो लाभो ॥९॥ सो उ परंपरएन संकामनिताच जाच सहाणं । जहियं पुण आपलिया बहियं पुण अंतरे ठानि।२५८०॥ ते पुण ठित एकाए पसहीए अहर पुष्फकिग्णा उ। अनानि उ संकमणे दबस्सिणमी पिही अपणो ॥१॥ सुन्तत्वननुभयचिसारयाण घोचे असंतईभेटे। संकमणदरमंडलिभापलियाकपत्रणुदासा ॥२॥ पुत्रहिताण खिते दि जागपोज अण्ण आयरिओ। बसप बहुआगमिजो तसा समासम्म जइ सेती ॥३॥किनि अहिजेनाही थो सेनं पतंजदि हपिजा। ताहे असंधांना दोपिणऽपि साह विसनि ॥४॥ अण्णोष्णस्स समासे तेसिपिय तय पिन-:माणार्ग। आमपणा तह प प जह भणियमर्णतरे सुत्ने ॥५॥ एवं नित्रापाते मास पडम्मासिओ उ राण। कयो कारणजो पुण अणुनासो कारणं जाय ॥ ६॥ एसऽणुवासणकप्पो जहणा अणुपारणाएं कर्ष । सलेबसमरिहर बोच्छामि अहं समासेनं ॥७॥ मोहतिगिच्छाएं गते गद्दे सेनादि अहप कालगने । आपरिए नम्मि गणे पीलादिस्क्लपहाए।..१७८ास.१६७ादा को उगणी वणिजो भण्णा जद तस्स कोशि सीसो उ सुत्तत्यतमएहि। जिम्मानो सो ठवेयो।ल. १६८॥९॥ असतीय नस्ल नाहे ठावेपदा कमेणिमेचं नु। पान कुले नाणे खेले मुहदुक्खि सुत सीसे ।। 8. १५९॥२५९० ॥ गुरुगुर गुरुणं तू वा गुरुसजिझालो व तस्स सीसो बापजएमपस्सी एमादी होनणापतो॥१॥असतीएं कुलिचो वा तस्सऽसतीए गएगपातीभो। खेने उपसंपारणे तस्सऽसनीए ठमेयत्रो ॥२॥ सहक्लियस्स असनी नस्सऽसतीए सभोवसंपण्यो। एवं तु पियाण गहि सीसम्मि उ मम्गणा नदिय ॥३॥ पाहिन्छगणधरे पुण उपिए तहियं तु मम्मणा इगयो । सुत्तरथमहिजेते अणहिजते इमें विभागा॥४॥साहारणं तु पदमे चिलिए खेतम्मि तनिए सक्से। अगहिजते सीस सेसे एकारस विभागा॥५॥ पुबुदिमणस्स उ पहिहं पचाययंतस्सा संपच्चारम्मि परमे पहिच्छए जनु सबिनं ॥ ६॥ पुर्वपंचदिहे पदिष्ठए जंतु होइ सचिन । संवच्छरश्मि चितिए ने सब पवाययंतस्स ॥७॥ पुरंपच्छुट्टेि सीसम्म जंतु होइ सचित्त । संबच्छरम्भि पढमे त सत्र गणस्स आमवति ॥ ८॥ पुहिङगणसचि पदिई पपाययंतस्स । संवटरम्मि बितिए सीसम्मिनुजतु सचित्तं ॥९॥ पुर्वपहिडे सीसम्मित जंतु होति सचित्त। संबच्छरश्मि ततिएर पाययंतस्स १२६०० ॥ पुदि गपी पचड़हिट्ट पचाययंतस्स। संवटरम्मि पढमे सिस्सिगीए जैतु सचित्तं ॥१॥ पुर्वपदिई सिरिसणीएजंन होइ सचित्त । सवारम्धि चितिए तसा पवायतस्स ॥२॥ पुर्वपदि पहिटियाए उस जं नु सविनं। संपयारम्मि पढमे तं सब पवाययंतस्स ॥ ३॥ सेतुबसपायरिओ सुहदुक्ती चेव जति तु संठपिओ । कुलगणसंधियो वा तस्स इमो होनि उ विगो ॥४॥ संबष्ठराणि नि(द)नि उसीसम्मि पहिण्याश्मि दिवस। एक कुलिनगणिचे संबष्ठर संघ उम्मासा ३५० तत्वेव याणिभ्याए अनिम्मए निगएमा मेरा सकुले तिमि तियाई गणदुग संवण्ठरं संपे॥६॥ओमारिकारणेहिं एम्मेहनेण वाव मिम्माए। काऊग कुन्डसमार्य कुलधरे वा उप. द्वेति ॥ ॥णय हायणाई ताहे कुल त सिक्खापए पयत्तेणं। य किचि तेसि निन्दा गणो दुर्ग एग संपो उ॥८॥ एवं तु दुवालसहिं समाहि जति नस्य कोड निम्मानी। ना णति अणिम्माए पुणो कुलादीउबहाणा ॥९॥ तेणेच कमेण तु पुगोसमाओ विचारस उ। निम्माए निहती इहर कुलादी पुणोवट्ठा ॥२६१०॥ नहविय भार समाओ निम्माओ सो सि गणहरो होछ। तेग परमनिम्माए इया विही होइ नेसि तु॥१॥ उत्तीसारकते पंचविहुपसंपदाएं 1223 पत्रकन्यभाप्पं - अनि दीपरताना अनुक्रम [२६११] ~53~
SR No.004139
Book TitleAagam 38 B PANCHKALP Bhashya ev
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2015
Total Pages56
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_panchakalpa_bhashya
File Size20 MB
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