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________________ आगम (३८/२) प्रत सूत्रांक २४९९] “पंचकल्प” - छेदसूत्र-4/२ (भाष्य) ------------- भाष्यं [२४९९] ------------ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य ममपीती। जवारणसमे(गवदोसवंण समुंजे ॥८॥नाणचरणे स्याण एसुषदेसो उपणिओ सत्यात गणहरेहि गहिये तो ते सुतनागपुरिसा उ॥९॥ कि कारण अण्णा ? संभो. गविही उ एस साहूर्ण । भण्णा नागादीर्ण परिवादी एच होहिति तु ॥२५०० ॥ अम्णोऽण्णस्स सगासे नाणमहीहितिजं च गहिता । होहिंति चिरा परणे फाहिति गिलाणकिच ॥१॥ जति संभोगगुणा ते ता सके कीस ग परिनुमति'। मम्मति सरिसऽहिहिं व संमोगोण पुण हीणेहिं ॥२॥ अस्थि पुण केड पुरिसा लिगलिगेणं पमाप कुष्यति। आहारउनहि सेजा जुत्तो संभुजगायो॥११॥आहारादीतिय उम्गममादीजसुद्धगहणेणं जे कुल्वति पमा तेसि संचासदोसेण ॥४॥अणुमारणपचतिजओ मा बंधी होहितिति नेणे तापनि कीय सेमोगो तेविय चमि(निगला वर होता ॥५॥ मनु रागदोसियत समुंजण एग एगऽसंभोगे?। भण्णाति ण रामदोसा सुगम जकारणं एवं ॥६॥ संभंजणा विमुदा उपमह कुणा नामचरमाण। समुंजणा असुदा चरितमेदं विषाणाहि ॥७॥ मोगेण षमाएनं तदोसार्ण तु होइ समणुष्या। एवं चरितभेदो कि पुण सो कुवनि पमा ॥८॥ प्यारसपदिषदो सुब असुई करे संमोग। अहवापि अजाणतो संभोगविहीए गुणदोसे।..१७२॥९॥ पूजाहेत पमादी सेवाति रसहेउगं च तस्सेची। नाणादिलवकर्ष कुणा असुदं तु सो एवं ॥२५१०॥बारस मूलपदा खलु सभोगविहीच पग्लिया सुने। जत्तो पापादाणं मणितं वाण उपसेको ॥१॥ उचहिसुलभत्तपाणे, अंजलीपरगाहे इच। पाषणाय निकाएप, आभा त्तियाचरे ।ल०१६१॥२॥किहकमास य करणे, वेयाषचकरणेझ्या समोसरण समिसेजा, कहाए य पधणे ॥०१६२॥३॥ एते बारस भेदा संभोगविहीयसमक्खाया। पावादाण तेसु य इमेहिं ठाणेहि णायल०१६३॥४॥ रामहोसागुमओ जो संभोग तु पालए पर्स। सो दुहोणायत्रो नस्क्ले वो विसंभोगो ॥५॥ अहम इमेहि न कारणेहि नियमा म विसंभोगो। समोगविहिजो त विवरीय आयरिजाहि ॥६॥ उपरिम मज्जिाम हेडिम संभोगडाग निहा विभए। पहिले पहिसेहो समापणे होत समष्णो॥१७ ॥ उचरिमएत्ति अहागढ़ मज्झिममा होति अप्पपरिकम्मा। सपरिकम्मा हिहिम संभोगविही तिहा एसो॥८॥अहाकडा मिलति अहाकडेसु, मतं च पाणं तह धोरणं बा। अहाकहा गच्छति हिहिमेन हिहिया एम्भ अहाकडेसु ॥९॥ मज्झिमिता हिडिमते उम्मइन हिहिमा उपरिमे। एसो तिविहो उ भवे संभोगविही समासेणं ॥२५२०॥ पडिसह परिहो सपरिकम्त होत परिचाई। तस्स पुणो पडिसहो उपसित मेलमा जाउ ॥१॥ परिसेहो हेदवार उपरितो हिहिमे अणुण्णाजी। परिसेहि अण्णा हॉनि मा तमुवा ॥२॥ जो पडिसिन एवं भावरती तस्स होइ पहिसेहो। पडिसहों विवेगुनी अवितहकरणे अणुण्णा उ॥३॥ केरिसएणं तु सर्म संभोगो सेसि होइ काययो । अहवाचिण कायो ? भण्णा णमो निसामेहि ॥ णपि एस मंदधम्मे ण मिहत्येसुम चेष अजासु। वायत्तरीचिमत्तोऽवितरे पडिसेहणं जाणे ॥..१७४॥५॥ विजा घेप्पइयवहा फेसिपी ण दिजए ण घेपद उरि दिजति पतित पनि दिनति गवि उपेपर ॥६॥ संविमासंजयाण विना पेमह वपढममंगो उ। संजतिको दिजति गवि पेप्पड़ कारणे वितिमील०१६४॥७॥ निहिचतित्वियार्ण गपि दिइ पेप्पई उ नवरं चानवि दिनति मवि पेपद पासल्यादीण सग्नेसि ॥ल.१६५॥८॥वायत्तरीविभत्तत्ति एस बारसविहो उ संभोगी। उहि गणिओ बावतार संभोगाणं पुणेयला ॥९॥ वाचत्तरी उ एसा दुगतिगचउपचारकसंगुणिया। जाचक्ष्य होति मेदा तेस विसुबेसु संभोगो ॥२५३०॥ पडिसेहों अमुद्देस को संभोग एस लाओ । अरुणा उलिंगकर्ष वोच्छामि अहाणपुबीए ॥१॥जो पुधि नखाओ जिणवेराणं तु दोभवी कापी । रुदणहकक्षमादी सो चेच उहपि णायनो ॥२॥ इनि एस लिंगकापी वोमी पडिसेवनाएँ कप तु। जारिसर्य सेविकति सदममुबं समासेणं ॥३॥ गहणपरिमुंजणाए निवाधाए तहेव वाघाए। बाधाए दुरगहणं निवापाए यतियमहर्ण ।...१७॥४॥ पडिसेवा उनिहा गहणे परिमुंजणे य नाया। एकेकाविय चिहा निवाघाने व पापाते॥५॥ बापासम्मी सुर्व गेण्ह असुदं च एतदुयमहर्ण। परिजनीधि एवं निच्चापातम्मि बोच्छामि ॥६॥ उम्गममादीमुई मेहति परिमुंजती व तिवमेचं । अह पुण को पापातो? परूपणा तस्सिमा हो। ॥ ७॥ असिवे ओमोदरिए रायढे भएप आगादे । कायनम्। वाचाय बापाने निचपाते य 1 सुदमसुदंच जहि जहवा सचित्तमीसमं वाचि। एतेसि दो तबाघाने गहण भोगे य॥९॥पिचापाए उण्हषि अमित्ताणं तु गहण काचार्ग। गहियस्स व परिमोगो तस्सेप य होइ कायद्यो॥२५४०॥ परिभोगे पापाते गहिए पष्ठा तुहीन से गात। जहाहाकम्मनी ताहेय तयं ण परिभुजे ॥१॥ वाचाते सेतो अफिचमेयं तु चिंतए साहा हो तहा निजस्तो जो पुष इममो समायरति ॥२॥ पूजारसपरिषदो ओसणाणं व आणूयसीया चरणकरण निगृहतितं जागऽयत्तियं समर्ण ।।...१७६॥३॥ पूजारसहेगाने जा कियमेव एवं तु मा मेग देहिति पुनो जह एसोऽकिचकारित्ति ॥४॥ अहला ओसवाणं तु अणुयत्तीय अतिको दोसो। आहाफम्मादीस' गर मा कीस सयंत ॥५॥सो गृहति चरणादी एवं तुच्छ सुतस्स सामर्थ । वम्हा उपकवेज्जासुदं मनुकिंचाणं ॥६॥ पिस्साणपदं पीहा अणिस्सविहरंतयणरोएति। ते जाण मंचम्म लोगगनेसन समर्ण अहवा उम्मग्गो खलु निस्सा तु पीहए जो उ। तस्स उ छेदसुतत्वं ग कई दोसा इमे नहियं ॥८॥ पंचमहायमेदो उकायवहो य नेणऽशुष्णाजो। (२७८) १११२ पत्रकमभाग्य - मुनि दीपरतासागर दीप अनुक्रम [२४९९] आपका लियोन का ~52
SR No.004139
Book TitleAagam 38 B PANCHKALP Bhashya ev
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2015
Total Pages56
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_panchakalpa_bhashya
File Size20 MB
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