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________________ आगम (१८) प्रत सूत्रांक [१५१] गाथा: दीप अनुक्रम [२७८ -२८४] श्रीजम्बूद्वीपशान्तिचन्द्री या वृत्तिः ॥४९० ॥ वक्षस्कार [७], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ... ১৩°°° "जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति उपांगसूत्र -७ (मूलं + वृत्तिः) Juma intentional मूलं [१५१] + गाथा: .... आगमसूत्र [१८], उपांग सूत्र [७] "जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति मूलं एवं शान्तिचन्द्र विहित वृत्तिः .......... - | श्वरो महाग्रहस्त्रिंशता संक्त्सरैः सर्वनक्षत्रमण्डलमभिजिदादिकं समापयति एतावान् कालविशेषः त्रिंशद्वर्षप्रमाणः शनैश्चरसंवत्सर इति । उक्ताः संवत्सराः, अथैतेषु कति मासा भवन्तीति पृच्छन्नाह एगमेगस्स णं भन्ते ! संवच्छरस्स कइ मासा पण्णत्ता ?, गोअमा ! दुबालस मासा पण्णत्ता, तेसि णं दुविहा णामा पं० वं०लोइआ लोउत्तरिआ य, तत्थ छोइआ णामा इमे, वं० - सावणे भद्दवए जाव आसाढे, लोउत्तरिआ णामा इमे, वंजहा - अभिनंदिए पट्टे अ, विजए पीवद्धणे । सेअंसे य सिवे वेष, सिसिरे अ सहेमवं ॥ १ ॥ णवमे वसंतमासे, इसमे कुसुमसंभवे । एकारसे निवाहे अ, वणबिरोद्दे अ बारसमे ॥ २ ॥ एगमेगस्स णं भन्ते ! मासस्स कति पक्खा पण्णत्ता ?, गोअमा ! दो पक्खा पण्णत्ता, तं०- बहुलपक्खे अपले अ । एगमेगस्स णं भन्ते ! पक्खस्स कइ दिवसा पण्णत्ता ?, गोजमा ! पण्णरस दिव पण्णत्ता, सं०--पडिवादिवसे बितिआदिवसे जान पण्णरसीदिवसे, एतेसि णं भंते! पण्णरसण्डं दिवसाणं कइ णामघेज्जा पण्णत्ता ?, गोजमा ! पण्णरस नामभेजा पण्णत्ता, तं०-- पुष्वंगे सिद्धमणोरमे अ तत्तो मणोरहे चैव। जसभद्दे अ जसधरे ह समिद्धेम ॥ १ ॥ इंदमुद्धाभिसिते अ सोमणस घणंजए अ बोद्धव्वे ॥ अत्थसिद्धे अभिजाए अञ्चसणे सर्वजए चैव ॥ २ ॥ अग्गवेसे उसमे दिवसाणं होंति णामभेजा ॥ एवेसि णं भंते! पण्परसहं दिवसानं कति तिही पण्णत्ता ?, गो० 1 roणरस तिही पण्णत्ता, सं०-नंदे भद्दे जए तुच्छे पुण्णे पक्वस्स पंचमी । पुणरवि णंदे भरे जर तुच्छे पुण्णे पक्त्रस्स दसमी । पुणरवि गंदे भद्दे जए तुच्छे पुण्णे पक्खस्स पण्णरसी, एवं ते विगुणा तिहीओ सबेसि दिवसाणंति । एगमेगस्स णं भंते! प्रक्वस्स कई ईओ पण्णत्ताओ ?, गोअमा! पण्णस्स राईओ पण्णत्ताओ, सं०- पढिवाराई जाय पण्णरसीराई, एआसि णं अथ संवत्सरस्य मास पक्ष - दिनानाम् नामानि प्रदर्श्यते For P&P Cy ~983 ~ ७वक्षस्कारे मासपक्षा दिनामानि सू. १५२ ॥४९० ॥ wy w
SR No.004118
Book TitleAagam 18 JAMBUDWIP PRAGYPTI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1097
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size264 MB
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