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________________ आगम (१८) “जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति” - उपांगसूत्र-७ (मूलं+वृत्तिः ) वक्षस्कार [3], ----- ---- मूलं [६५] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१८], उपांग सूत्र - [७] "जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति" मूलं एवं शान्तिचन्द्र विहित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [६५] जेणेब खंडपवायगुहा तेणेव ख्वागच्छह २त्ता सवा कयमालकवत्तव्वया अवा णवरि णमालगे देवे पीतिदाणं से आलंकारिअभंड कढगाणि अ सेसं सर्व तहेब जाव अहाहिआ महामः । तए णं से भरहे राया णहमालगस्स देवस्स अट्ठाहिआए म० णिवत्ताए समाणीए सुसेणं सेणावई सहावेइ २ चा जाव सिंधुगमो अब्बो, जाव गंगाए महाणईए पुरथिमिल्छ णिक्खुढं सगंगासागरगिरिमेराग समविसमणिक्खुडाणि अ ओअवेइ २ चा अग्गाणि वराणि रयणाणि पडिच्छह २ ता जेणेव गंगा महाणई तेणेव उवागच्छइ २ ता दोचंपि सक्त्रंधावारवले गंगामहाणई विमलजलतुंगवीइं णावाभूएणं चम्मरयणेणं उत्तरइ २ ता जेणेव भरहस्स रण्णो विजयखंधावारणिवेसे जेणेव बाहिरिआ उबट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ २ ता आभिसेक्काओ हत्थिरयणाओ पञ्चोरुहइ २ चा अम्गाई वराई रयणाई गहाय जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छइ २ ता करयलपरिग्गहिरं जाव अंजलि कट्ट भरहं रायं जएणं विजएणं बद्धावेइ २ ता अग्गाई वराई रयणाई उवणेइ । तए णं से भरहे राया सुसेणस्स सेणावइस्स अगाई वराई रयणाई पडिच्छइ २ ता सुसेणं सेणावई सकारेइ सम्माणेइ २ ता पडिविसजेइ, तर गं से सुसेणे सेणाबई भरहस्स रण्णो सेसपि तहेब जाव विहरद, तए णं से भरहे राया अण्णया कयाइ सुसेणं सेणावइरयणं सदावेइ २ ता एवं वयासी-आच्छणणं भो देवाणुप्पिा ! खंडगप्पवायगुहाए उत्तरिलस्स दुवारस्स कवाडे विहाडेहि २ ता जहा तिमिसगुहाए तहा भाणिअव्वं जाव पि भे भवउ सेसं वहेब जाव भरहो उत्तरिखेगं दुवारेणं अईइ, ससिब्ब मेहंधयारनिवहं तहेव पविसंतो मंडलाई आलिहद, तीसे गं खंडगप्पवायगुहाए बहुमज्जादेसभाए जाव उम्ममाणिमग्गजलाओ णामं दुबे महाणईमो तहेव णवरं पश्चथिमिल्लाओ कडगाओ पढाओ समाणीओ पुरस्थिमेणं गंगं महाणई समति, सेसं वहेब णवरि पञ्चस्थिमियेणं फूलेणं गंगाए संकमवत्तन्वया तहेवत्ति, तए दीप अनुक्रम [१०४] Sa090989096800 ~512~
SR No.004118
Book TitleAagam 18 JAMBUDWIP PRAGYPTI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1097
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size264 MB
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