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________________ आगम (१८) “जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति” - उपांगसूत्र-७ (मूलं+वृत्तिः ) वक्षस्कार [३], ---- मूलं [५०] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.........आगमसूत्र - [१८], उपांग सूत्र - [७] "जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति मूलं एवं शान्तिचन्द्र विहित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [५०] दीप अनुक्रम [७४] eseeeeeeeeeeeeeeese तावद् वक्तव्यं यावत्ताः श्रेणिप्रश्रेणयोऽष्टाहिकाया महामहिमायास्तामाज्ञप्तिका प्रत्यर्पयन्ति यथाऽष्टाहिकोत्सवः कृत इति । अथ वैताव्यसुरसाधनमाहतए णं से दिवे चकारयणे सिंधूर देवीए अवाहिआए महामहिमाए णिवत्ताए समाणीए आउहघरसालाओ तदेव जाव उत्तरपुरच्छिमं दिसि वेअद्धपत्याभिमुहे पयाए आवि होत्या, तए णं से भरहे राया जाव जेणेव अद्धपधए जेणेव वेअद्धस्स पव्वयस्स दाहिणिल्ले णितंये येणेव उवागच्छद २त्ता वेअद्धस्स पब्वयस्स दाहिणिले णितंवे दुवालसजोअणायामं णवजोअणविच्छिण्णं वरणगरसरिच्छं विजयखंधावारनिवेसं करेई २ ता जाव वेअद्धगिरिकुमारस्स देवस्स अट्ठमभत्तं पगिण्हइ २ चा पोसहसालाए जाब अट्ठमभत्तिए वेअद्धगिरिकुमारं देवं मणसि करेमाणे २ चिट्टइ, तए णं तस्स भरहस्स रण्णो अट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि वेअद्धगिरिकुमारस्स देवस्स आसणं पलद, एवं सिंधुगमो णेभन्यो, पीइदाणं आभिसेकं रयणालंकारं कडगाणि अतुडिआणि अबस्थाणि अाभरणाणि अगेहद २ ता ताए उकिवाए जाव अट्ठाहिरं जाव पञ्चप्पिणंति । तए ण से दिने चकरयणे अट्ठाहियाए महामहिमाए णिव्वत्ताए समाणीए जाव पञ्चत्थिमं दिसि तिमिसगुहाभिमुहे पयाए आदि होत्था, तए णं से भरहे राया तं दिव्वं चकरयणं जाव पञ्चत्धिर्म विर्सि तिमिसगुहामिमुहं पयातं पासइ २ चा हतुहचित्तजावतिमिसगुहाए अदूरसामंते दुवालसजोषणायाम णवजोअणविच्छिण्णं जाव कयमालस्स देवस्स अट्ठमभत्तं पगिण्हइ २ ता पोसहसालाए पोसहिए वंभयारी जाव कयमालगं देवं मणसि करेमाणे २ चिट्ठइ, तए णं तस्स भरहस्स रणो अट्ठमभत्तंसि परिणममाणसि कयमालस्स देवस्स आसणं चलइ तहेव जाव वेभवगिरिकुमारस्स JinElainine अथ वैताट्यसुर-साधनाधिकार: वर्ण्यते ~434~
SR No.004118
Book TitleAagam 18 JAMBUDWIP PRAGYPTI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1097
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size264 MB
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