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________________ आगम (१८) “जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति” - उपांगसूत्र-७ (मूलं+वृत्तिः ) वक्षस्कार [१], ----- ---- मूलं [११] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१८], उपांग सूत्र - [७] "जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति मूलं एवं शान्तिचन्द्र विहित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [११] उत्तरेण पुरथिमलवणसमुदस्स पचत्यिमेणं पञ्चत्थिमलवणसमुदस्स पुरत्थिमेणं एत्य णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणभरहे णाम वासे पण्णत्ते पाईणपडीणायए उदीणदाहिणविच्छिण्णे अद्धचंदसंठाणसंठिए तिहा लवणसमुदं पुढे, गंगासिंधूहिं महाणईहिं विभागपवि. भचे दोणि अद्वतीसे जोअणसए तिणि अ एगूणवीसइभागे जोयणस्स विक्खंभेणं, तस्स जीवा उत्तरेणं पाईणपडीणायया दुहा लवणसमुदं पुहा पुरथिमिल्लाए कोडीए पुरथिनिलं लवणसमुदं पुट्ठा पञ्चस्थिमिलाए कोटीए पञ्चथिमिलं लवणसमुदं पुट्ठा णव जोयणसहस्साई सत्त य अडयाले जोयणसए दुवालस य एगूणवीसइभाए जोयणस्स आयामेणं तीसे धणुपुढे दाहिणणं णव जोयणसहस्साई सत्तछाबडे जोयणसए इक्कं च पगूणवीसहभागे जोयणस्स किंचिविसेसाहिलं परिक्खेवणं पण्णत्ते, दाहिणभरहस्स ण भंते ! बासस्स कॅरिसए आयारभावपढोयारे पण्णत्ते!, गो०! बहुसमरमणिज्ने भूमिभागे पण्णत्ते, से जहा णामए आलिंगपुक्खरेइवा जाव णाणाविह पचवण्णेहिं मणीहि वणेहिं उवसोभिए, तंजहा-कित्तिमेहिं चेव अकित्तिमेहिं चेव, वाहिणभरहे णं भंते! बासे मणुयाणं केरिसए यारभावपडोयारे पण्णत्ते !, गोयमा। ते णं मणुआ बहुसंघयणा बहुसंठाणा बहुलचत्तपज्जवा बहुभाउपज्जवा बहूई वासाई आउ पालेंति, पालिसा अप्पेगइया णिरयगामी अपेगइया तिरियगामी अप्पेगइया मणुषगामी अप्पेगइया देवगामी अप्पेगइआ सिशंति बुझंति मुञ्चति परिणिवायंति सवदुक्खाणमंतं करेंति (सूत्र ११) 'कहि णं भंते !' इत्यादि, इदं च सूत्रं पूर्वसूत्रेण समगमतया विवृतमार्य, नवरं अर्द्धचन्द्रसंस्थानसंस्थितत्वं तु दक्षिण18| भरतार्द्धस्य जम्बूद्वीपपट्टादावालेखदर्शनाद् व्यक्तमेव, तथा त्रिसंख्या भागास्त्रिभागास्तैः प्रविभक्तं, तत्र पौरस्त्यो भागो eeseserseatsecseerecedese thesesesepersecticesercedesesese दीप अनुक्रम [१२] JinEleiniti-IN ~ 138~
SR No.004118
Book TitleAagam 18 JAMBUDWIP PRAGYPTI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1097
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size264 MB
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