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________________ आगम (१५) “प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [२०], -------------- उद्देशक: [-], ------------- दारं [-], -------------- मूलं [२५७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: प्रत सूत्रांक [२५७]] eseroeseseseekerserseas दीप अनुक्रम [४९९] मागताः कियन्त एकसमयेऽन्तक्रियां कुर्वन्ति इत्येवरूपं तृतीयं द्वारमभिधित्सुराह अणंतरागया नेरइया एगसमये केवइया अंतकिरियं पकरेंति ?, गोयमा ! जहनेणं एगो वादो या तिनि वा उकोसेणं दस, रयणप्पभापुढवीनेरइयावि एवं चेव, जाव वालुयप्पभापुढवी०, अणंत मंते! पंकपभापुढवीनेरइया एगसमयेणं केवतिया अंतकिरियं पकरेंति ?, गोयमा ! जहन्नेणं एको वा दो वा तिन्नि वा उकोसेणं चत्वारि, अणन्तरागया णं भंते ! असुरकुमारा एगसमये केवतिआ अंत. पकरेंति , गोयमा! जह• एको वा दो वा तिन्नि वा उक्कोसेणं दस, अणंतरागया णं भंते ! असुरकुमारीओ एगस० केव० अंत पकरति ?, गोयमा! जह• एको वा दो चा तिनि वा उकोसेणं पंच, एवं जहा असुरकुमारा सदेवीया तहा जाव थणिअ० । अणंतरागया णं भंते ! पुढवि० एगसमये केवइया अंतकिरियं पकरेंति ?, गोयमा ! जहएको वा दो वा तिनि वा, उकोसेणं चत्तारि, एवं आउकाइयापि चत्वारि, वणस्सइकाइया छच्च, पंचिदियतिरिक्खजोणिया दस, तिरिक्खजोणिणीओ दस, मणुस्सा दस, मणुस्सीओ वीस, वाणमंतरा दस, वाणमंतरीओ पंच, जोइसिआ दस, जोइसिणीओ वीसं, वेमाणिआ अहसयं, वेमाणिणीओ पीसं । (सूत्र २५७) 'अणंतरागया णं भंते ! इत्यादि, नैरयिकभवादनन्तरं-अव्यवधानेन मनुष्यभवमागता अनन्तरागताः, नैर-18 यिका इति प्राग्भवपर्यायेण व्यपदेशः सुरादिप्राग्भवपर्यायप्रतिपत्तिव्युदासार्थः, एवमुत्तरत्रापि तत्तत्माग्भवपर्यायेण Tassa9829899 A ~ 799~
SR No.004115
Book TitleAagam 15 PRAGNAPANA Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1227
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size261 MB
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