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________________ आगम (०५) "भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं वृत्ति:) शतक [७], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [१०], मूलं [३०७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: 8C % प्रत सूत्रांक [३०७] दीप अनुक्रम [३७९] तराए चेव जाव अप्पवेयणतराए चेव । से केणट्टेणं भंते!एवं बुच्चइ-तत्थ णं जे से पुरिसेजाव अप्पवेयणतराए व, कालोदाई। तत्थ णं जे से पुरिसे अगणिकायं उज्जालेइ से णं पुरिसे बहुतरागं पुढविकार्य समारंभति। बहुतराग आउकार्य समारंभति अप्पतरायं तेऊकार्य समारंभति बहुतरागं वाऊकार्य समारंभति बहुतराय प्रावणस्सइकार्य समारंभति बहुतरागं तसकायं समारंभति, तत्थ णं जे से पुरिसे अगणिकार्य निवावेति से णं | पुरिसे अप्पतराय पुढविकार्य समारंभइ अप्पतरागं आउक्कार्य समारंभइ बहुतरागं तेउकार्य समारंभति अप्पतरागं वाउकार्य समारंभइ अप्पतरागं वणस्सइकार्य समारंभइ अप्पतरागं तसकार्य समारंभति से 2 तेण?णं कालोदाई ! जाव अप्पवेयणतराए चेव ॥ (मूत्रं ३०७)॥ ४ा 'दो भंते ! इत्यादि, 'अगणिकायं समारंभंति'त्ति तेजाकार्य समारभेते उपद्रवयतः, तत्रैक उज्जवालनेनान्यस्तु | विध्यापनेन, तत्रोज्वालने बहुतरतेजसामुत्पादेऽप्यल्पतराणां विनाशोऽप्यस्ति तथैव दर्शनात् , अत उक्तं 'तत्थ एगें ४ इत्यादि, 'महाकम्मतराए चेव'त्ति अतिशयेन महत्कर्म-ज्ञानावरणादिक यस्य स तथा, चैवशब्द: समुच्चये, एवं 'महाकिरियतराए चेव'त्ति नवरं क्रिया-दाहरूपा 'महासवतराए चेव'त्ति बृहत्कर्मबन्धहेतुकः 'महावेयणतराए चेव'त्ति महती वेदना जीवानां यस्मात्स तथा ॥ अनन्तरमग्निवक्तव्यतोक्का, अग्निश्च सचेतनः सन्नवभासते, एवमचित्ता अपि पुद्गलाः किमवभासन्ते ? इति प्रश्चयन्नाह अस्थि णं भंते ! अचित्तावि पोग्गला ओभासंति उज्जोवेंति तति पभाति !, हंता अस्थि । कयरे गं कालोदायी-श्रमणस्य कथा ~658~
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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