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________________ आगम (०५) "भगवती"- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [७], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [१०], मूलं [३०६] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [३०६] दीप अनुक्रम [३७८] व्याख्या- ताए'त्ति दूरूपतया हेतुभूतया 'जहा महासवए'त्ति षष्ठ शतस्य तृतीयोद्देशको महाश्रवकस्तत्र यथेदं सूत्रं तहाप्यध्येप्रज्ञप्तिः यम्, 'एवामेव ति विषमिश्रभोजनवत् । 'जीवा णं भंते ! पाणाइवाए'इत्यादौ भवतीतिशेषः 'तस्स णति तस्य | ४७शतके अभयदेवी उद्देशः१० प्राणातिपातादेः 'तओ पच्छा विपरिणममाणे'त्ति 'ततः पश्चात् आपातानन्तरं 'विपरिणमत्' परिणामान्तराणि || ज्वालक या वृत्तिः१] गच्छत् प्राणातिपातादि कार्य कारणोपचारात् प्राणातिपातादिहेतुकं कम्मेति 'दुरूवत्ताए'त्ति दूरूपताहेतुतया परिणमति विध्यापक ॥३२६॥॥ दूरूपंतां करोतीत्यर्थः । 'ओसहमिस्संति औषधं-महातितकघृतादि 'एवामेव'त्ति औषधमिश्रभोजनवत् 'तस्स णं' तियोः कर्म प्राणातिपातविरमणादेः 'आवाए नो भदए भवति'त्ति इन्द्रिय प्रतिकूलत्वात , 'परिणममाणे'त्ति प्राणातिपातविरम |सू ३०७ णादिप्रभवं पुण्यकर्म परिणामान्तराणि गच्छत् ॥ अनन्तरं कर्माणि फलतो निरूपितानि, अथ क्रियाविशेषमाश्रित्य तत्कनुपुरुषद्वयद्वारेण कर्मादीनामल्पबहुस्वे निरूपयति दो भंते ! पुरिसा सरिसया जाव सरिसभंडमत्तोबगरणा अनमनेणं सद्धिं अगणिकार्य समारंभंति तत्थ ४॥ ४ एगे पुरिसे अगणिकायं उजालेति एगे पुरिसे अगणिकार्य निवावेति, एएसिणं भंते ! दोण्हं पुरिसाणं &कयरे २ पुरिसे महाकम्मतराए चेव महाकिरियतराए चेव महासवतराए चेय महायणतराए चेव कयरे वा पुरिसे अप्पकम्मतराए चेव जाव अप्पवेयणतराए चेव, जे से पुरिसे अगणिकायं उजालेइ जे चा से पुरिसे अगणिकायं निवावेति !, कालोदाई। तत्थ ण जे से पुरिसे अगणिकार्य उज्जालेह से गं पुरिसे महा-|| कम्मतराए चेव जाव महावेषणतराए चेव, तत्थ णं जेसे पुरिसे अगणिकायं निवावेह से णं पुरिसे अप्पकम्म ॐॐॐॐॐॐ - कालोदायी-श्रमणस्य कथा ~657~
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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