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________________ आगम (०५) "भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [७], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [९], मूलं [३०१-३०४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.........आगमसूत्र - [09], अंग सूत्र - [५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [३०१-३०४] दीप व्याख्या-13 वरुणे जाव तुरए विसज्जेति पडिसंधारगं दुरूहह पडिसंथारगं दुरूहित्ता पुरत्याभिमुहे जाव अंजलि कटु ७ शतके प्रज्ञप्तिः एवं वयासी-जाणं भंते ! मम पियवालवयस्सस्स वरुणस्स नागनत्तुयस्स सीलाई बयाई गुणाई वेरमणाई उद्देशः ९ पचक्याणपोसहोववासाई ताइ णं ममंपि भवंतुत्तिकद्द सन्नाहपट्टे मुयह२ सद्धरणं करेति सद्धरणं करेत्ता २०४वरुणआणुपुषीए कालगए, तए णं तं वरुणं णागणनुयं कालगयं जाणित्ता अहासन्निहिएहिं वाणमंतरेहिं देवेहि 8 स्येकावता रिता | दिवे सुरभिगंधोदगवासे बुढे दसद्धबन्ने कुसुमे निवाडिए दिवे य गीयगंधवनिनादे कए यावि होत्या, तए णं तस्स वरुणस्स णागनत्तुयस्स तं दिवं देविहि दिवं देवजुर्ति दिवं देवाणुभागं सुणित्ता य पासित्ता य बहुजणो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ जाव परूवेति-एवं खलु देवाणुप्पिया ! बहवे मणुस्सा जाव उववत्तारो भवंति ॥ (सूत्रं ३०३) वरुणे णं भंते !नागनत्तुए कालमासे कालं किचा कहिं गए कहिं उपवने, गोयमा! सोहम्मे कप्पे अरुणाभे विमाणे देवत्ताए उववन्ने, तस्थ णं अत्थेगतियाणं देवाणं चत्तारि पलिओवमाणि ठिती | पन्नता, तस्थ णं वरुणस्सवि देवस्स चत्तारि पलिओवमाइं ठिती पन्नत्ता । से णं भंते ! वरुणे देवे ताओ देवलोगाओ आउखएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं जाव महाविदेहे वासे सिझिहिति जाव अंतं करेहिति।। वरुणस्स णं भंते ! णागणनुपस्स पियवालवयंसए कालमासे कालं किचा कहिं गए? कहिं उववन्ने ?,गोयमा सुकुले पचायाते।से णं भंते तओहिंतो अणंतर उच्चट्टित्ता कहिं गच्छहिति कहिं उववजहिति?, गोयमा !महाविदेहे वासे सिजिझरिति जाव अंतं करेंति।सेच भंते से भंते !सि(सूत्रं३०४)सत्तमस्स णवमो उद्देसो॥७९॥ ||४|| अनुक्रम [३७३-३७६] ॥३२॥ वरुण-नागपुत्रस्य एकावतारित्वं ~647~
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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