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________________ आगम (०५) प्रत सूत्रांक [ ३०१ -३०४] दीप अनुक्रम [३७३-३७६] “भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं + वृत्ति:) शतक [७], वर्ग [-], अंतर् शतक [-], उद्देशक [९], मूलं [३०१-३०४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [०५], अंग सूत्र [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः | कए समाणे अत्थामे अबले अवीरिए अपुरिसकारपरक्कमे अधारणिजभितिकट्टु तुरए निगिन्es तुरए निगिपिहत्ता रहं परावतेइ रहं परावत्तित्ता रहमुसलाओ संगामाओ पडिनिक्खमति २एगंतमंतं अवकमर एगंतमत अवक्कमित्ता तुरए निगिण्हइ २ रहं ठबेइ २ ता रहाओ पचोरहर रहाओ २ रहाओ तुरप मोएह तुरए मोए ता तुरए बिसज्जेइ २ ता [ ग्रन्थ ४००० ] २ दम्भसंधारगं संधरइ २ [ पुरच्छाभिमुहे दुरूहइ दन्नसं० २] पुरच्छाभिमुद्दे संपलियंकनिसन्ने करयल जाव कट्टु एवं वयासी-नमोत्थु णं अरिहंताणं जाव संपत्ताणं नमोऽत्यु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स आइगरस्स जाव संगाविउकामस्स मम धम्मायरियस्स धम्मोवदेसगस्स वंदामि णं भगवन्तं तत्थगयं इहगए पासउ मे से भगवं तत्थगए जाव वंदति नम॑सति २ एवं व यासी - पुर्विपि मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धूलए पाणातिवाद पञ्चकखाए जावजीवाए एवं | जाव धूलए परिग्गहे पचक्खाए जावज्जीवाए, इयाणिंपिणं अरिहंतस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं सवं पाणा| तिवायं पञ्चक्खामि जावज्जीवाए एवं जहा खंदओ जाव एयंपि णं चरमेहिं ऊसासनीसासेहिं बोसिरिस्सामित्तिक सन्नाहपट्टे मुबइ सन्नाहपट्टे मुइत्ता समुद्धरणं करेति समुद्धरणं करेत्ता आलोइयपडिकंते समाहिपत्ते आणुपुछीए कालगए, तए णं तरस वरुणस्स णागनत्तुयस्स एगे पियवालवयंसर रहमुसलं संगाम | संगामेमाणे एगेणं पुरिसेणं गाढप्पहारीकए समाणे अस्थामे अबले जाव अधारणिज्यमितिकट्टु वरुणं णागनसुयं रहमुसलाओ संगामाओ पडिनिक्खममाणं पासइ पासइत्ता तुरए निगेण्et तुरए निगेण्हित्ता जहा Education Internation रथमुशलं संग्रामं, वरुण - नागपुत्रस्य एकावतारित्वं For Penal Use Only ~ 646~
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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