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________________ आगम (०५) "भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [७], वर्ग [-1, अंतर्-शतक [-], उद्देशक [६], मूलं [२८७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.........आगमसूत्र - [09], अंग सूत्र - [५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [२८७] शतके उद्देशः ७ दुष्पमदुष्पमारका सू २८७ दीप अनुक्रम [३५९] व्याख्या- हलम्भूए समयाणुभावेण य णं खरफरुसधूलिमइला दुबिसहा चाउला भयंकरा वाया संवट्टगा य वाइंति, इह अभिक्खं धूमाईति य दिसा समंता रस्सलारेणुकलुसतमपडलनिरालोगा समथलुक्खयाए यणं अहियं चंदा| से सीयं मोच्छंति अहियं मूरिया तवइस्संति अदुत्तरं च णं अभिक्खणं बहवे अरसमेहा विरसमेहा खारमेहा खट्टमेहा या वृत्तिः अग्गिमेहा विजुमेहा विसमेहा असणिमेहा अप्पणिज्जोदगा वाहिरोगवेदणोदीरणापरिणामसलिला अमणुन्न॥३०५॥ पाणियगा चंडानिलपहयतिक्खधारानिवायपउर वासंवासिर्हिति।जेणं भारहे वासे गामागरनगरखेडकब्बडमडंपदोणमुह पट्टणासमागयंजणवयं चउप्पयगवेलगए खहयरे य पक्खिसंघे गामारन्नपयारनिरए तसे य पाणे बहुप्पगारे रुक्खगुच्छगुम्मलयवल्लितणपब्वगहरितोसहिपचालंकुरमादीए यतणवणस्सइकाइए विद्धंसेहिति पचयगिरिडोंगरउच्छलभट्टिमादीए वेयहगिरिवज्जे विरावेहिंति सलिलबिलगदुग्गविसमं निण्णुनयाई च गंगासिंधुवजाई समीकरेहिति॥ तीसे णं भंते समाए भरहवासस्स भूमीए केरिसए आगारभावपडोयारे भविस्सति, गोयमा! भूमी भविस्सति इंगालम्भूया मुम्मुरभूपा छारियभूया तत्तकबेल्लपभूया तत्तसमजोतिभूया धूलिबहुला रेणुबहुला पंकबगुला पणगबहुला चलणिबहुला यहूणं धरणिगोयराणं सत्ताणं दोनिकमा य भविस्सति ॥ (सूत्रं२८७) | 'जंबुद्दीवे ण'मित्यादि, 'उत्तमकट्टपत्ताए'त्ति परमकाष्ठाप्राप्तायाम् , उत्तमावस्थायां गतायामित्यर्थः, परमकष्टप्राघायां वा, आगारभावपडोयारे'त्ति आकारभावस्य-आकृतिलक्षणपर्यायस्य प्रत्यवतारः-अवतरणम् आकारभावप्रत्यवतारः 'हाहाभूए'त्ति हाहाइत्येतस्य शब्दस्य दुःखार्तलोकेन करणं हाहोच्यते तद्भूतः-प्राप्तो यः कालः स हाहाभूतः "भंभाभूए'त्ति 21%A5%%%% ॥३०५॥ दुषम-सुषम: आरकस्य वर्णनं ~615~
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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