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________________ आगम (०५) प्रत सूत्रांक [६१७] दीप अनुक्रम [७२७] व्याख्याप्रज्ञप्तिः अभयदेवीया वृत्तिः २ ॥७३८॥ “भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं + वृत्ति:) शतक [१८], वर्ग [−], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [२], मूलं [६१७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः | हस्तवाहिणीओ सीपाओ दुरूह २ प्ता मित्तनाइजावपरिजणेणं जेट्ठपुत्तेहि थ समणुगम्ममाणमग्गा सवडीए जाव रवेर्ण अकालपरिहीणं चेव मम अंतियं पाउ भवह, तए णं ते नेगमसहस्संपि कत्तियस्स सेहिस्स एयमहं विणणं पडिसुर्णेति प० २ जेणेव साई साईं गिहाई तेणेच उवागच्छइ २ विपुलं असणजाब उखडावैति २ मित्तनाइजाय तस्सेव मित्तनाइजाव पुरओ जेट्टपुत्ते कुटुंबे ठावेंति जेट्ठपुत्ते० २ तं मित्तनाइजाब जेहपुत्ते य आपुच्छति जेट्ट० २ पुरिससहस्सवाहिणीओ सीयाओ दुरुहंति दु० २ मित्तणातिजाव परिज णणं जेपुतेहि य समणुगम्ममाणमग्गा सहीए जाव रखेणं अकालपरिहीणं चैव कलियम्स सेट्ठिस्स अंतियं पाउदभवति, तए णं से कत्तिए सेट्ठी विपुलं असणं ४ जहा गंगदत्तो जाब मित्तणातिजायपरिजणेणं जेठ्ठपुत्तेणं णेगमसहस्त्रेण य समयुगम्यमाणमग्गे सबढिए जाव रवेणं हत्थिणापुरं नगरं मज्झमज्झेणं जहा गंगदतो जाब आलिते णं भंते! लोए पलिते णं भंते । लोए आलित्तपलित्ते णं भंते ! लोए जाव | अणुगामियत्ताए भविस्सति तं इच्छामि णं भंते ! णेगमट्टसहस्सेण सद्धिं सयमेव पचावियं जाव धम्ममाइक्खियं, तए णं मुणिसुए अरहा कत्तियं सेट्ठि गमद्वसहस्सेणं सद्धिं सयमेव पद्यावेति जाव धम्ममाइक्खड़, एवं देवाणुप्पिया ! गंतवं एवं चिट्ठियवं जाव संजमियां, तए णं से कसिए सेट्ठी नेगमद्वसहस्सेण सद्धिं मुणिसुस्स अरहओ इमं एथारूवं धम्मियं उबदेसं सम्मं पडिवज्जइ तमाणाए तहा गच्छति जाव संजमेति, तए णं से कत्तिए सेट्ठी णेगम सहस्सेणं सद्धिं अणगारे जाए ईरियासमिए जाव गुत्तवंभयारी, तए णं से Ja Eucation International कार्तिकश्रेष्ठी कथा For Parts Only ~ 1480~ १८ शतके उद्देशः २ कार्त्तिकश्रे व्यधिकारः सू ६१७ ॥७३८ ॥
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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