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________________ आगम (०५) प्रत सूत्रांक [ ४५८ ] दीप अनुक्रम [५५१] “भगवती”- अंगसूत्र-५ (मूलं + वृत्तिः) शतक [१२], वर्ग [–], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [७], मूलं [४५८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः व्याख्या प्रज्ञप्तिः अभयदेवीया वृत्तिः २ ॥ ५८० ॥ वणस्स इकाइयत्ताए नरगत्ताए नेरइयत्ताए उबवनपुत्रे ?, हंता गोयमा ! असई अदुवा अनंतखुसी, अयनं भंते! जीवे सकरप्पभाए पुढवीए पणवीसा एवं जहा रयणप्पभाए तहेव दो आलावा भाणियन्वा, एवं जाव धूमप्पभाए । अयन्नं भंते ! जीवे तमाए पुढवीए पंचूणे निरयावाससय सहस्से एगमेगंसि सेसं तं चैव, अयन्नं भंते ! जीवे आहेसत्तमाए पुढवीए पंचसु अणुत्तरेसु महतिमहालएमु महानिरपसु एगमेगंसि निर यावासंसि सेसं जहा रयणप्पभाष, अयन्नं भंते! जीवे चोसट्ठीए असुरकुमारावाससय सहस्सेस एगमेगंसि असुरकुमारावासंसि पुढविकाइयत्ताए जाच वणस्सइकाइयत्ताए देवताए देवीसाए आसणसयणभंडमत्तोवगरणत्ताए उबवन्नपुचे १, हंता गोयमा । जाव अनंत खुत्तो, सङ्घजीवावि णं भंते! एवं चेव, एवं धणिय कुमारेसु, नाणत्तं आवासेसु, आवासा पुवभणिया, अयन्नं भंते ! जीवे असंखेज्जेसु पुढविकाइयावासस्यसहस्से एगमेगंसि पुढविकाइयावासंसि पुढविकाइयत्ताए जाव वण० उबवन्नपुवे ?, हंता गोयमा ! जाव अनंत खुत्तो एवं सङ्घजीवाबि एवं जाव वणरसइकाइएस, अयण्णं भंते ! जीवे असंखेजेस वेंद्रियावाससय सहस्से एग| मेगंसि बेंदियावासंसि पुढविकाइयत्ताए जाव वणस्सइकाइयत्ताए वेइंदियत्ताए उबवन्नपुत्रे ?, हंता गोयमा ! जाव खुत्तो, सङ्घजीवावि णं एवं चेव एवं जाव मणुस्सेसु, नवरं तेंदियएस जाव वणस्सइकाइयत्ताए तेंदियत्ताए वरिदिए चरिंदियत्ताए पंचिदियतिरिक्खजोगिएसु पंचिदियतिरिक्खजोणियन्ताए मणुस्सेसु मणुस्सन्ताए सेसं जहा बेंदियाणं, वाणमंतरजोइसिय सोहम्मीसाणेसु य जहा असुरकुमाराणं, अपणं For Par Use Only ~1165~ १२ शतके ७ उद्देशः नरकादितया सर्वेषामनन्तकृस्व उत्पादः सू ४५८ ॥ ५८० ॥ yor
SR No.004105
Book TitleAagam 05 BHAGVATI Moolam evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2014
Total Pages1967
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size424 MB
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