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________________ 184 जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति अधिक प्रचलित आसन रहे हैं, किन्तु महावीर के द्वारा गोदुहासन में ध्यान करके केवलज्ञान प्राप्त करने का भी उल्लेख हैं। 45 .. खड़े रहने वाले आसनों में मुनि किशनलालजी ने समपादासन को उत्तम बताया है।46 - जैन-ग्रंथों में इसे ही दंडासन या खड्गासन कहा गया है। 'दंडासन का वर्णन औपपातिकसूत्र में मिलता है। इसमें दण्ड की तरह स्थिर खड़े रहना होता है।7 खड्गासन में भी सीधे खड़े रहना होता है। . ___ दशाश्रुतस्कंध में बैठे हुए आसनों में 'निषधासन, गोदुहासन और उत्कुटकासन का भी उल्लेख मिलता है। निषधासन में पालथी लगा कर पर्यकासन से सुखपूर्वक बैठा जाता है। गोदुहासन में पूरे शरीर को दोनों पैरों के पंजों पर रखा जाता है। जंघा एवं उरू आपस में मिले हुए रहते हैं और दोनों नितम्ब एड़ी पर टिके हुए रहते हैं। उत्कटकासन में दोनों पैरों को समतल रखकर उन पर पूरे शरीर को रखते हुए बैठना होता है। आचार्य महाप्रज्ञजी के अनुसार, इसी को वज्रासन भी कहते हैं। दशाश्रुतस्कंध में ही सोकर किए जाने वाले आसनों में उत्तानासन, दंडासन, पार्वासन और लकुटासन का वर्णन है। 49 उत्तानासन आकाश की तरफ मुख करके साने को कहते हैं। दंडासन खड़े व सोकर- दोनों तरह से किया जाता है। जिस प्रकार दंड को सीधा जमीन पर रखें, उसी प्रकार सीधे लेट जाना दंडासन है। पावसिन एवं लकुटासन में करवट लेकर सोना होता है। दशाश्रतस्कंध में ऐसे भी आसनों का उल्लेख है, जो न तो बैठकर किये जाते हैं, न सोकर किये जाते हैं और न सीधे खड़े होकर किये जाते हैं, किन्त वे बैठने तथा खडे रहने के मध्य की अवस्था के हैं। इनमें पहला है- वीरासन, जिसमें पूरा शरीर दोनों पंजों के आधार पर तो रखना पड़ता हैं, किन्तु इसमें नितम्ब एड़ी से कुछ ऊपर उठे हुए रखना पड़ते हैं तथा जंघा और उरू में भी कुछ दूरी रखनी पड़ती है। 344 ज्ञानार्णव-28/11 "गोदोहियाए उक्कुडयनिलिज्जाए"- कल्पसूत्र 120 प्रेक्षाध्यान आसन प्राणायाम, मुनि किशनलाल, पृ. 42 औपपातिकसूत्र सूत्र., 19. मधुकरमुनि, पृ. 55 दशाश्रुतस्कंध, सातवी दशा, मधुकरमुनि, पृ. 65 349. दशाश्रुतस्कंध, सातवी दशा, मधुकरमुनि, पृ. 65 . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004099
Book TitleJain Darshan me Tanav aur Tanavmukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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