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________________ जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति 153 शुक्ल-लेश्या में व्यक्ति केवल साक्षीभाव में स्थिर रहता है, वह ज्ञाता-द्रष्टाभाव में रहता है, उसके राग-द्वेष के भाव क्षीण हो जाते हैं। उसका 'पर' से सम्बन्ध नहीं रहता है, अतः उसकी वृत्ति केवल इतनी ही होती है कि वह किसी का अहित न करें, अतः वह प्रायः तनावमुक्त रहता है। ... उत्तराध्ययनसूत्र में लेश्या की जो चर्चा है, उसके आधार पर हम इतना ही कह सकते हैं कि शुक्ल लेश्या वाला व्यक्ति तनावमुक्त रहता है, बाकी में तनाव की तरतमता होती है। कृष्ण लेश्या वाला व्यक्ति सबसे अधिक तनावग्रस्त रहता है, उसके ऊपर की लेश्याओं में क्रमशः तनावों में कमी होती जाती है और शुक्ल लेश्या तनावरहित अवस्था होती है। लेश्या मनुष्य की वैचारिक तथा मानसिक-परिणामों की अभिव्यक्ति है। आचार्य महाप्रज्ञ के अनुसार –'लेश्या हमारी चेतना की रश्मि हैं। जिस प्रकार सूर्य की रश्मियाँ सूर्य की अभिव्यक्ति-रूप होती हैं, उसी प्रकार लेश्याएं हमारी चेतना की रश्मि हैं, जो चेतना के आध्यात्मिक विकास के स्तर को अभिव्यक्त करती हैं। चेतना अदृश्य है, परन्तु उसकी अभिव्यक्ति शरीर के आभा-मण्डल के माध्यम से बाहर भी होती है, ठीक उसी प्रकार, जिस तरह स्विच ऑन करने पर अदृश्य करंट की अभिव्यक्ति ट्यूबलाईट के प्रकाश के द्वारा होती है। . मन के परिणाम ही हमें तनावयुक्त बनाते हैं। शुभ मनोभाव तनावमुक्त और अशुभ मनोभाव तनावयुक्त करते हैं। तनाव से मुक्त और तनाव से युक्त मनोभावों के निमित्त से लेश्या भी शुभ और अशुभ-दोनों प्रकार की होती हैं। हम यह भी कह सकते हैं कि शुभ लेश्या वाला व्यक्ति तनावमुक्ति की ओर अग्रसर होता है और अशुभ लेश्या वाला व्यक्ति तनावयुक्त होता है। • लेश्याओं का नामकरण रंगों के आधार पर किया जाता है। वर्णों के माध्यम से मनुष्य-मन की शुभ या अशुभ स्थिति को जाना जा सकता है, इसलिए लेश्या के सिद्धांत को वर्णों पर आधारित किया गया है। लेश्या की परिभाषा - जैनदर्शन ने लेश्या का सम्बन्ध केवल मनुष्य से नहीं, अपितु सभी प्रकार के जीवों के साथ माना है। लेश्याओं के समानांतर कुछ मान्यताओं का वर्णन हमें प्राचीन श्रमण परम्पराओं में . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004099
Book TitleJain Darshan me Tanav aur Tanavmukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrupti Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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