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________________ सत्तरहवाँ लेश्या पद-प्रथम उद्देशक - दूसरा द्वार दूसरा द्वार रइया णं भंते! सव्वे समकम्मा ? गोयमा ! णो इण समट्टे । सेकेणणं भंते! एवं वुच्चइ - ' णेरड्या णो सव्वे समकम्मा ?' गोयमा ! णेरड्या दुविहा पण्णत्ता । तंजहा - पुव्वोव वण्णगा य पच्छोव वण्णगा य। तत्थ णं जे ते पुव्वोव वण्णगा ते णं अप्प कम्म तरागा, तत्थ णं जे ते पच्छोव वण्णगा ते णं महा कम्म तरागा, से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ -'णेरड्या णो सव्वे समकम्मा' ॥ ४७६ ॥ कठिन शब्दार्थ - पुव्वोव वण्णगा- पूर्वोपपन्नक - पहले उत्पन्न हुए, पच्छीव वण्णगा - पश्चादुपपन्नक - पीछे उत्पन्न हुए । भावार्थ- प्रश्न - हे भगवन् ! नैरयिक क्या सभी समान कर्म वाले होते हैं ? उत्तर - हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है । प्रश्न - हे भगवन् ! किस कारण से आप ऐसा कहते हैं कि नैरयिक सभी समान कर्म वाले नहीं होते हैं ? १४७ उत्तर- हे गौतम! नैरयिक दो प्रकार के कहे गए हैं, वे इस प्रकार हैं- पूर्वोपपन्नक - पहले उत्पन्न हुए और पश्चादुपपन्नक-पीछे उत्पन्न हुए। उनमें जो पूर्वोपपन्नक हैं, वे अपेक्षाकृत अल्प कर्म वाले हैं और उनमें जो पश्चादुपपन्नक हैं, वे महाकर्म- बहुत कर्म वाले हैं। इस कारण हे गौतम! ऐसा कहा जाता है कि नैरयिक सभी समान कर्म वाले नहीं होते हैं। Jain Education International विवेचन - जो नैरयिक पहले उत्पन्न हो चुके हैं वे अल्प कर्म वाले होते हैं क्योंकि पूर्वोत्पन्न नैरयिकों को उत्पन्न हुए अपेक्षा कृत अधिक समय हो चुका है वे नरकायु, नरक गति और असाता वेदनीय आदि कर्मों की बहुत निर्जरा कर चुके होते हैं, उनके ये कर्म थोडे ही शेष रहे होते हैं । इसलिए अल्पकर्म वाले कहे गये हैं किन्तु जो नैरयिक बाद में उत्पन्न हुए हैं वे महाकर्म वाले होते हैं क्योंकि उनकी नरकायु, नरकगति तथा असातावेदनीय आदि कर्मों की बहुत थोड़ी ही निर्जरा हुई है, बहुत से कर्म अभी शेष हैं इस कारण वे अपेक्षाकृत महाकर्म वाले हैं। यह कथन समान स्थिति वाले नैरयिकों की अपेक्षा से समझना चाहिये । तीसरा- चौथा द्वार रइया णं भंते! सव्वे समवण्णा ? गोयमा! णो इणट्टे समट्ठे । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004095
Book TitlePragnapana Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages412
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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