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________________ २८३६ भगवती सूत्र - २० उ. २ पंचास्तिकाय के अभिवचन सार जानना चाहिये । प्रश्न - हे भगवन् ! ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी लोकाकाश के संख्यातवें भाग या असंख्यातवें भाग आदि अवगाहित कर रही हुई है ? उत्तर - हे गौतम! लोकाकाश के संख्यातवें भाग को अवगाहित नहीं किया है, किन्तु असंख्यातवें भाग को अवगाहित किया है । संख्यात और असंख्यात भागों को भी अवगाहित नहीं किया है और सर्वलोक को भी अवगाहित नहीं किया है । शेष सब पूर्ववत् । पंचास्तिकाय के अभिवचन ४ प्रश्न - धम्मत्थिकायस्स णं भंते! केवइया अभिवयणा पण्णत्ता ? ४ उत्तर - गोयमा ! अणेगा अभिवयणा पण्णत्ता, तं जहा - धम्मे इवा धम्मत्थिकाये इ वा पाणावायवेरमणे इ वा मुसावायवेरमणे इवा एवं जाव परिग्गहवेरमणे इ वा कोहविवेगे इ वा जाव मिच्छादंसणसल्ल विवेगे इ वा इरियासमिई इ वा, भासासमिई इ वा, एसणा समिई इवा, आयाणभंडमत्तणिवरखेवणासमिई इ वा, उच्चारपासवणखेलजल्लसिंघाणपारिडावणयासमिई इ वा मणगुत्ती इवा, बड़गुत्ती इवा, कायगुत्ती इ वा, जे यावण्णे तहप्पगारा सव्वे ते धम्मथिकास अभिवयणा । Jain Education International कठिन शब्दार्थ - अभिवयणा - नाम । भावार्थ - 6 प्रश्न - हे भगवन् ! धर्मास्तिकाय के अभिवचन ( अभि For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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