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________________ भगवता मूत्र-ग. २० उ. २ लोकाकाग-अलोकाकाश . २८३५ . णं चिटुइ,' एवं जाव पोग्गलत्थिकाए । भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! आकाश कितने प्रकार का कहा गया है ? १ उत्तर-हे गौतम ! दो प्रकार का कहा गया है। यथा-लोकाकाश और अलोकाकाश । २ प्रश्न-हे भगवन् ! लोकाकाश, जीव रूप है या जीव देश रूप है, इत्यादि प्रश्न ? २ उत्तर-हे गौतम ! दूसरे शतक के दसवें अस्ति-उद्देशक के अनुसार यहां भी जानना चाहिये । विशेष में यह अभिलाप भी यहां कहना चाहिये प्रश्न-हे भगवन् ! धर्मास्तिकाय कितना बड़ा है ? उत्तर-हे गौतम ! धर्मास्तिकाय लोकरूप, लोकमात्र, लोकप्रमाण, लोकस्पृष्ट और लोक को अवगाह कर रहा हुआ है-' इस प्रकार यावत् पुद्गलास्तिकाय तक जानना चाहिये। ३ प्रश्न-अहेलोए णं भंते ! धम्मत्थिकायस्स केवइयं ओगाढे ? ३ उत्तर-गोयमा ! साइरेगं अधं ओगाढे, एवं एएणं अभिलावणं जहा बिझ्यसए जाव 'ईसिपमारा णं भंते ! पुढवी लोयागासस्स किं संखेजहभागं० ओगाढा-पुच्छा । गोयमा ! णो संखेजइ. भागं ओगाढा, असंखेजइभागं ओगाढा, णो संखेजे भागे ओगाढा, णो अमंखेजे भागे ओगाढा, णो सब्बलोयं ओगाढा।' सेसं तं चेव । - भावार्थ-३ प्रश्न-हे भगवन् ! अधोलोक, धर्मास्तिकाय के कितने भाग को अवगाहित कर रहा हुआ है ? । ३ उत्तर-हे गौतम ! कुछ अधिक अद्ध भाग को अवगाहित कर रहा हुआ है । इस प्रकार इस अभिलाप द्वारा दूसरे शतक के दसवें उद्देशक के अनु Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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