SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 490
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवतो सूत्र-श. ८ उ. १० कर्म-वर्गणाओं से आबद्ध जीव १५५३ णाणावरणिज, जाव अंतराइयं । २५ प्रश्न-णेरइयाणं भंते ! कइ कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ ? २५ उत्तर-गोयमा ! अट्ठ, एवं सब्वजीवाणं अट्ठ कम्मपगडीओ ठावेयबाओ जाव वेमाणियाणं । २६ प्रश्न-णाणावरणिजस्स णं भंते ! कम्मस्स केवइया अविभागपलिच्छेदा पण्णत्ता ? २६ उतर-गोयमा ! अणंता अविभागपलिच्छेदा पण्णत्ता । २७ प्रश्न-णेरहयाणं भंते ! णाणावरणिजस्स कम्मरस केवइया अविभागपलिच्छेदा पण्णत्ता ? २७ उत्तर--गोयमा ! अणंता अविभागपलिच्छेदा पण्णत्ता; एवं सब्वजीवाणं, जाव--(प्र.) वेमाणियाणं पुच्छा । (उ.) गोयमा ! अणंता अविभागपलिच्छेदा पण्णत्ता, एवं जहा णाणावरणिजस्स अविभागपलिच्छेदा भणिया तहा अट्टण्ह वि कम्मपगडीणं भाणियव्वा, जाव वेमाणियाणं जाव अंतराइयस्स। कठिन शब्दार्थ-ठावेयवाओ-स्थापित करनी चाहिये (कहनी चाहिये),अविभागपलिच्छेदा-अविभाग परिच्छेद (निरंश अंश-जिसका कोई विभाग नहीं हो सके वैसा अंश)। भावार्थ-२४ प्रश्न-हे भगवन् ! कर्म-प्रकृतियां कितनी कही गई हैं ? २४ उत्तर-हे गौतम ! कर्म-प्रकृतियाँ आठ कही गई हैं । यथा-ज्ञानावरणीय यावत् अन्तराय । ... २५ प्रश्न-हे भगवन् ! नरयिक जीवों के कितनी कर्मप्रकृतियां कही हैं ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy